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________________ 80 1 -2-1 - 10 (72) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अथवा अर्थ के कारण से विभक्ति और पुरुष का परिणाम होता है इसलिये तेन याने सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वरूप आत्मा के आत्मा को भावित करें, अथवा मोक्ष के लिये सम्यग् याने अपुनरागमन हो उस प्रकार, अनु याने यथोक्त-धर्मानुष्ठान से, अनुवासयेत् याने आत्मा से आत्मा में आत्मा को स्थापित करें... इति शब्द समाप्ति सूचक है... ब्रवीमि याने सुधर्मस्वामी कहते हैं कि- परमात्मा श्री वर्धमानस्वामीजी ने अर्थ से जो कहा है वह हे जम्बू ! मैं तुम्हे सूत्र से कहता हुं... v सूत्रसार : हम यह देख चुके हैं कि- कोइ भी मनुष्य शरीर एवं इन्द्रियों की स्वस्थता में ही संयमसाधना कर सकता है। चक्षु आदि इन्द्रियों की शक्ति निर्बल हो जाने के बाद वह भलीभांति साधना मार्ग में प्रवृत्त नहीं हो सकता। इसलिए शरीर एवं इन्द्रियों की स्वस्थता के रहते ही साधक को आत्म साधना में संलग्न हो जाना चाहिए। यही बात प्रस्तुत सूत्र में बताई गई है। सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय की सम्यग् आराधना से ही मोक्ष रूप साध्य की सिद्धि हो सकती है और यह मोक्षपद हि साधक का मूल लक्ष्य है। या यों कह सकते हैं कि- जिस साधना से आत्मा का हित हो उसी का नाम आत्मार्थ है। इस अपेक्षा से भी रत्न त्रय ही आत्मा के लिए हितकर हैं। क्योंकि- इनकी साधना से ही आत्मा कर्मबन्धन से सर्वथा मुक्त हो सकता है। इसके अतिरिक्त 'आयटुं' का संस्कृत रूप 'आयतार्थ' भी बनता है। आयत याने जिसकी कभी समाप्ति न हो अर्थात् आयत मोक्ष को कहते हैं, अत: मोक्ष प्राप्ति के लिए जो साधना की जाए उसे 'आयतार्थ' कहते हैं। इस अपेक्षा से भी ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्न त्रय की साधना को हि स्वीकार किया गया है। निष्कर्ष यह निकला कि- शरीर की स्वस्थता एवं इन्द्रियों में शक्ति-सामर्थ्य रहते हुए साधक को संयम साधना में प्रमाद नहीं करना चाहिए। किंतु विषय-वासना, धन एवं परिजनों की आसक्ति का त्याग कर आत्म साधन में प्रवृत्त होना चाहिए। इसी से आत्मा भाव लोक याने कषायों पर विजय प्राप्त कर पूर्ण सुख-शान्ति रूप निर्वाण को पा सकेगा। 'तिबेमि' का अर्थ पूर्ववत्...
SR No.004436
Book TitleAcharang Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages528
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size12 MB
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