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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 1 - 1 - 1 - 1 11 करके परम पवित्र आचारांग सूत्रकी नियुक्ति कहता हुं... मंगलाचरण... इष्ट देव एवं गुरुजनोंको नमस्कार... 2. अभिधेय... आचारांग सूत्रकी नियुक्ति कहुंगा... संबंध... गुरुपर्वक्रमसे प्राप्त अर्थानुसार.. ___ 4. प्रयोजन... परोपकारके माध्यमसे मोक्षपदकी प्राप्ति... अधिकारी... अबुध किंतु जिज्ञासु ऐसे भव्यजीव... वन्दित्वा = वंदन करके... मन-वचन कायासे... सर्वसिद्धान् = जिन्होंने घाति एवं अघाति सकल कर्मोका सर्वथा क्षय किया है एसे 15 भेदसे सिद्धत्वको प्राप्त सभी सिद्धोंको मन-वचन-कायासे नमस्कार करके... जिनान् : राग-द्वेष एवं मोहको जितनेवाले 15 कर्मभूमीमें होनेवाले तीनों कालके सकल जिनेश्वर - अरिहंत परमात्माओंको मन-वचन कायासे नमस्कार करके... अनुयोगदायकान् = गौतम स्वामी आदि 11 गणधर तथा वीर प्रभुकी पाट-परंपराको धारण करनेवाले सुधर्मास्वामी... जंबूस्वामी... प्रभवस्वामी... शय्यंभवसूरि... एवं यशोभद्रसूरि... कि, जो यौदपूर्वधर आ. श्री भद्रबाहुस्वामीजीके गुरु है... उन्हे नमस्कार करके... यहां गुरु परंपराका निर्देश करनेसे यह ज्ञात होता है कि... यहां जो भी कहेंगे वह सब कुच्छ गुरुजनोंसे उपलब्ध हुआ है वह ही कहेंगे... वन्दित्वा = यहां "त्वा' प्रत्यय सम्बन्धक भूत कृदन्त है अतः यहां दो क्रियाओंका निर्देश होता है... जैसे कि... वन्दन करके आचारांग सूत्रकी नियुक्ति कहुंगा... नियुक्ति - निश्चित अर्थको कहनेवाली युक्ति.. कीर्तयिष्ये = कहुंगा याने देव-गुरु की कृपा से जो "तत्त्वार्थ'' अंतःकरणमें स्फुरायमान हो रहा है वह प्रगट रूप से आपको कहुंगा... अब आ. भद्रवाहस्वामीजी प्रतिज्ञानुसार हि निक्षेप योग्य पदोंको दुसरी गाथामें कहते हैं... नि.२ आचार, अंग, श्रुतस्कंध, ब्रह्मचरण, शस्त्रपरिज्ञा, संज्ञा एवं दिक् ये सभी पद निक्षेप योग्य
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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