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________________ 323 - श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका नि. 88 लोगागासपएसे इक्किक्के निक्खिवे पुढविजीवं __एवं मविज्जमाणा हवंति लोआ असंखिज्जा // 88 // नि. 89 निउणो उ होइ कालो तत्तो निउणयरयं हवइ खित्तं / अंगुलसेढीमित्ते ओसप्पिणीओ असंखिज्जा // 89 // नि. 90 अणुसमयं च पवेसो निक्खमणं चेव पुढविजीवाणं / काए कायद्विइया चउरो लोया असंखिज्जा // 90 // नि. 91 बायरपुढविक्काइयपजत्तो अन्नमनमोगाढो सेसा ओगाहंते सुहमा पुण सव्वलोगंमि // 91 // नि. 92 * चंकमणे य हाणे निसीयण तुयट्टणे य कयकरणे उच्चारे पासवणे उवगरणाणं च निक्खिवणे // 92 // नि. 93 आलेवण पहरण भूसणे य कयविक्कए किसीए य / भंडाणंपि य करणे उवभोगविही मणुस्साणं / / 93 // नि. 94 ____ एएहिं कारणेहिं हिंसंति पुढविकाइए जीवे . सायं गवेसमाणा परस्स दुक्खं उदीरंति // 94 // नि. 95 हलकुलियाविसकुद्दालालित्तयमिगसिंगकट्ठमग्गी य / उच्चारे पासवणे एयं तु समासओ सत्थ // 95 // नि. 96 किंची सकायसत्थं किंची परकाय तदुभयं किंचि / / एयं तु दव्वसत्थं भावे अ असंजमो सत्थं // 9 // नि. 97 पायच्छेयण भेयण जंघोरु तहेव अंगुवंगेसुं जह हुंति नरा दुहिया पुढविक्काए तहा जाण // 97 // नि. 98 नत्थि य सि अंगुवंगा तयाणरूवा य वेयणा तेसिं / केसिंचि उदीरंति केसिंचऽतिवायए पाणे // 98 //
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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