________________ 318 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन नि. 33 जिअसंजमो अ लोगो जह बज्झइ जह य तं पजहियव्वं / सुहदुक्खतितिक्खाविय सम्मत्तं लोगसारो य // 33 // नि. 34 निस्संगया य छढे मोहसमुत्था परीसहुवसग्गा / निजाणं अट्ठमए नवमे य जिणेण एवं ति // 34 / / नि. 35 जीवो छक्कायपरूवणा य तेसिं वहे य बंधोत्ति / विरईए अहिगारो सत्थपरिन्नाए नायव्वो // 35 // नि. 38 दव्वं सत्थग्गिविसन्नेहंबिलखारलोणमाईयं भावो य दुप्पउत्तो वाया काओ अविरईया / / 36 || . नि. 37 दव्वं जाणण पच्चक्खाणे दविए सरीर उवगरणे / भावपरिण्णा जाणण पच्चक्खाणं च भावेणं // 37 / / नि. 38 दव्वे सम्वित्ताई भावेऽनुभवणजाणणा सण्णा / मति होइ जाणणा पुण अनुभवणा कम्मसंजुत्ता . // 38 // नि. 39 आहार भय परिग्गह मेहुण सुख दुक्ख मोह वितिगिच्छा। ' कोह मान माय लोहे सोगे लोगे य धम्मोहे // 39 // . नि. 40 नाम ठवणा दविए खित्ते तावे य पण्णवग भावे / . एस दिसानिक्लेवो सत्तविहो होइ नायव्वो . // 40 // नि. 41 तेरसपएसियं खलु तावइएसुं भवे पएसेसुं / जं दव्वं ओगाढं जहण्णयं तं दसदिसागं // 41 // नि. 42 अट्ठ पएसो रुयगो तिरियं लोयस्स मज्झयारंमि एस पभवो दिसाणं एसेव भवे अणुदिसाणं // 42 // नि. 43 इंदग्गेई जम्मा य नेरुति वारुणी य वायव्वा सामा इसाणावि य विमला य तमा य बोद्धव्वा // 43 / /