________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका // 1-1-6-1 (49) 269 6. उत्पन्न होनेवाले पायु कृमि (करम) आकृतिवाले बहुत छोटे जीवजंतु... संस्वेदज- पसीनेमें उत्पन्न होनेवाले मत्कूण (खटमल) जू, कानखजूरे आदि... संमूर्च्छिम- पतंगीया, चीटिंया, मक्खी, आशालिक आदि संमूर्च्छन प्रकारसे उत्पन्न होनेवाले... उद्भिदज- उभेनसे उत्पन्न होनेवाले- पतंगीया, खंजरीट पारिप्लव आदि... इस प्रकार संसारी त्रसजीवोंके आठ हि भेद हैं... इन आठ प्रकारके अलावा (अन्य) और कोई प्रकार, जन्म की अपेक्षासे संसारमें सजीवोंके नहिं है... अन्य शास्त्रमें तीन प्रकार भी कहा है... संमूर्च्छन- रसज, स्वेदज, उद्भेदज... (3 प्रकार) गर्भज- अंडज, पोतज, जरायुज... (3 प्रकार) उपपातज- देव और नारक... (2 प्रकार) इस प्रकार तीन प्रकारके जन्मके उत्तर भेद आठ होतें हैं... इस प्रकार आठ प्रकारके जन्ममें सभी सजीवोंका समावेश होता है... इन आठके सिवाय अन्य कोई प्रकार नहिं है... - यह आठ प्रकारके योनीवाले जीव बाल-स्त्री आदि लोगोंको प्रत्यक्ष हि है... "सन्ति" इस पदसे त्रस जीव इस विश्वमें तीनों कालमें होतें हैं, संसारमें सजीवोंका अभाव कभी नहिं होता है... यह अंडज आदि आठ प्रकारके जीवोंके समूहको हि संसार कहतें हैं... सजीवोंका * उत्पत्तिका प्रकार इन आठके अलावा और कोइ नहिं है... यह इस सूत्रका सार है... इन आठ प्रकारके सजीवोंमें, कौन कौन जीव उत्पन्न होतें हैं ? यह बात, अब सूत्रकार महर्षि आगे के सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : आगमों में जीव के दो भेद कहे गए हैं-१-सिद्ध और २-संसारी / संसारी जीव भी दो प्रकारके हैं-१-स्थावर और २-त्रस / स्थावर जीवों के पांच भेद किए गए हैं-१-पृथ्वीकाय, २-अप्काय, 3-तेजस्काय, ४-वायुकाय, और ५-वनस्पतिकाय / इनमें तेजस्काय और वायुकायको लब्धि अस भी माना है, परन्तु इनकी योनि स्थावर नाम कर्मके उदयसे प्राप्त होती है तथा इनके एक स्पर्श इन्द्रिय ही होती है, इस लिए इन्हें स्थावर माना गया है / त्रस जीवों के मुख्य चार भेद किए गए हैं-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय / इनके अनेक भेद-उपभेद हैं-जिनका आगमों में विस्तार से वर्णन किया गया है /