________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी - हिन्दी - टीका 卐 1 - 1 - 6 - 1 (49) 261 नि. 154 1. रत्नप्रभा आदि पृथ्वीमें रहनेवाले नारकोंके सात भेद है... 2. तिर्यंच भी बेइंद्रिय, तेइंद्रिय, चउरिंद्रिय एवं पंचेंद्रिय भेदसे चार प्रकारके हैं... 3. मनुष्यके दो भेद. 1. गर्भज 2. संमूर्छिमज... 4. देवोंके चार प्रकार. 1. भवनपति 2. व्यंतर 3. ज्योतिष्क 4. वैमानिक देव इस प्रकार गतिग्रस जीवोंके मुख्य भेद चार हैं... गतिनामकर्मक उदयसे नरक आदि गतिकी प्राप्ति जिन्हें हुइ है, वे जीव गतित्रस कहलातें हैं... यह सभी नारक आदि जीव पर्याप्त एवं अपर्याप्त भेदसे दो दो प्रकारके होते हैं... पर्याप्ति पूर्व कहे गये प्रकारसे छह (6) प्रकारकी है... ___dio ल 3. 4. आहार पर्याप्ति शरीर पर्याप्ति इंद्रिय पर्याप्ति श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति भाषा पर्याप्ति मनः पर्याप्ति आहारके परिणमनकी शक्ति. शरीर बनानेकी शक्ति. इंद्रियोंको निर्माण करनेकी शक्ति श्वास परिणमनकी शक्ति भाषा बोलनेकी शक्ति विचार (चिंतन) करनेकी शक्ति... एकेंद्रिय जीवको चार पर्याप्ति बेइंद्रिय जीवको पांच पर्याप्ति तेइंद्रिय जीवको पांच पर्याप्ति चउरिंद्रिय जीवको पांच पर्याप्ति पंचेंद्रिय (असंज्ञी) जीवको पांच पर्याप्ति 6. पंचेंद्रिय (संज्ञी) जीवको छह (E) पर्याप्ति... अपने योग्य पर्याप्तियोंसे पूर्ण वे पर्याप्त... और अपने योग्य पर्याप्तियोंसे जो अपूर्ण है वे अपर्याप्त... अपर्याप्त जीवोंका आयुष्य अंतर्मुहूर्त-काल होता है... अब गतित्रस जीवोंका उत्तरभेद कहतें हैं... ल >> Gi