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________________ आचारांग सूत्र नी भावणा (भावना) अने विमुत्ती (विमुक्ति) नामनी छेल्ली बे चूलिकाओ विशे आचारांगनी चूर्णिमां ओवी सरस वात आवे छे के श्री स्थूलिभद्रनां बहेन यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्रमा गयां हतां अने त्यां श्री सीमंधर स्वामीनां दर्शन कर्या हतां. ते समये श्री सीमंधर स्वामी ओमने भावणा अने विमुत्ती नामनां बे अध्ययन आप्यां हता. जे संघे आचारांग सूत्रमा अंते चूलिका तरीके स्थापित कर्या हता. (श्री हेमचंद्राचार्यना त्रिषष्टि शलाकापुरुष चरित्रना परिशिष्ट पर्व प्रमाणे श्री सीमंधर स्वामी यक्षा साध्वीने चार अध्ययन आप्यां हतां, जेमांथी संघे बे 'आचारांग' मां अने बे 'दशवैकालिक'मां चूलिका तरीके स्थापित कर्या हतां.) 'आचारांग सूत्र' मां अढी हजार वर्ष प्राचीन ओवी भगवान महावीर स्वामीनी वाणी यथास्वरुपे सचवाइ रही छे ‘आचारांग सूत्र' ना आरंभमां ज गणधर श्री सुधर्मस्वामी श्री जंबस्वामीने कहे छे : सयं मे आउसं। तेणं भगवया एवमक्खाय- (हे आयुष्यमान ! में सांभळ्यं छे ते भगवान वर्धमान स्वामीओ आ प्रमाणे कर्तुं छे) आथी ज ‘आचारांग सूत्र' नी अधिकृत वाचनानुं संपादन करनार प.पू. श्री जंबूविजयजी महाराजे ओ ग्रंथनी प्रस्तावनामां कहुं छे, 'आचारांग सूत्र मां अतिसंक्षिप्त छतां अत्यंत वेधक अनेकानेक सुवाक्यो अनेक स्थळे पथरायेला छे. गंभीर रीते तेनुं मनन करवामां आवे तो अनादिकालीन अज्ञान अने मोहने क्षणवारमा हचमचावी मूके ओवी तेनामां अत्यंत तेजोमय दिव्य शक्ति भरेली छे. आचारांग सूत्र, अध्ययन करती वखते प्रभु, महावीर परमात्मानी अतिशयोथी भरेली पांत्रीस गुण युक्त दिव्य, गंभीर वाणी जाणे साक्षात् सांभळतां होइओ तेवो अपूर्व आनंदानुभव थाय छे. अटले ज आवा दिव्य ग्रंथ उपर श्री शीलांकाचार्य संस्कृतमां लखेली टीकानो हिन्दीमां अनुवाद प्रकाशित थाय छे अथी आनंदोल्लास अनुभवाय छे. आ ग्रंथमा मूळ सूत्र, संस्कृत छाया शब्दार्थ, सूत्रार्थ, टीका-अनुवाद अने सूत्रसार ओ क्रममां लेखन थयुं छे. लेखन व्यवस्थित अने पद्धतिसर थयुं छे. सूत्रसारमा ते ते विषयनी सविगत अधिकृत छणावट करवामां आवी छे प.पू. श्रीजयप्रभविजयजीओ जे परिश्रम उठाव्यो छे ते अनुमोदनीय छे. अमां अमनी शास्त्रप्रीतिना अने शास्त्रभक्तिनां सुपेरे दर्शन थाय छे. अमणे पोताना दादागुरु श्री राजेन्द्र सूरीश्वरजीनी अने पोताना गुरुवर्य श्री यतीन्द्र सूरीश्वरजीनी ज्ञानोपासनानी परंपराने साचवी छे ओ नोंधपात्र छे. प.पू. श्री जयप्रभविजयजी महाराज साथेनो मारो परिचय केटलाक वर्ष पहेलां पालीताणामां ज्यारे जैन साहित्य समारोह योजायो हतो त्यारथी छे. आ समारोह वस्तुतः ओमनी प्रेरणाथी ज गोठवायो हतो. ओ वखते ओमनी ज्ञानोपासनानी, साहित्यप्रीतिनी प्रतीति थइ हती. ज्योतिष अंगेनो अमनो 'मुहूर्तराज' नामनो ग्रंथ सुप्रसिद्ध छे. अमणे 'श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षाशताब्दी ग्रंथ' नुं संपादन कर्यु छे. हवे अमना हाथे श्री शीलांकाचार्यनी आचारांगवृत्तिनो हिन्दी अनुवाद थयो छे अने ते प्रकाशित थाय छे ओ अत्यंत आनंदनो अवसर छे. आ ग्रंथ अनेकने आगमोना अभ्यासमां सहायभूत थशे. ज्ञानोपासनाना क्षेत्रे आ ओक मोटुं योगदान गणाशे.
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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