________________ 240 1 - 1 - 5 - 2 (41) श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन % शब्दादि गुणोंमें होता है... आवर्तके नामादि भेदसे चार प्रकारके निक्षेप होतें हैं... 1. नाम, 2. स्थापना, 3. द्रव्य 4. भाव... नाम एवं स्थापना निक्षेप सुगम है... द्रव्य-आवर्त स्वामित्व, करण एवं अधिकरण के विभागसे तीन (3) प्रकारसे है... स्वामित्व- नदी आदिके जलके परिभ्रमणको द्रव्य आवर्त कहतें है... (द्रव्यस्य आवतः) अथवा... हंस, बतख, चक्रवाक आदि आकाशमें क्रीडा करते करते आवर्त (कुंडाले) बनातें हैं वह द्रव्य आवर्त... (द्रव्याणां आवतः) करण- चक्राकारसे भमते हुए जल-द्रव्यसे तृण एवं चटाइ आदि जो कभी कभी गोल गोल आवर्त करतें हैं वह करण आवर्त... (द्रव्येण आवर्तः) तथा अपु (कलइ), सीसा, लोहा. चांदी. सोना (सवर्ण) आदि गोल गोल घमते हैं, तब द्रव्योंसे जो आवर्त बनता है वह करण आवर्त (द्रव्यैः आवर्तः) अधिकरण आवर्त- एक जल द्रव्यमें आवर्त या तो अनेक चांदी, सोना, पीत्तल, कांसा, . कलइ, सीसा, आदि एक जगह कीये हुए बहोत द्रव्योंमें जो आवर्त होता है वह अधिकरण आवतः... (द्रव्ये आवर्तः - द्रव्येषु आवतः) . भाव- आवर्त याने परस्पर भावका संक्रमण... अथवा औदयिक भावोंके उदयसे नरक आदि चारों गतिमें जीव परिभ्रमणा करतें हैं... यहां इस सूत्रमें भाव-आवर्तका अधिकार है... शेष आवर्त तो आनुषंगिक कहे गये संसारमें परिभ्रमणाके कारण स्वरूप वनस्पतिसे उत्पन्न हुए शब्दादि गुण, क्या कोई एक नियत दिशामें रहे हुए है या सभी दिशाओंमें रहे हैं ? इस प्रश्नका उत्तर अब सूत्रकार स्वयं आगे के सूत्रसे कहेंगे... VI सूत्रसार : यह संसार क्या है ? इसके संबन्ध में दार्शनिकों एवं विचारकों के मन में यह प्रश्न उठता रहा है, तर्क-वितर्क होता रहा है / परन्तु संसार के वास्तविक स्वरूप को जानने में सफलता नहीं मिली / प्रस्तुत सूत्र में सूत्रकार ने इसका वास्तविक समाधान किया है / सूत्रकार के शब्दों में हम देख चुके हैं कि शब्दादि गुण ही संसार है और संसार ही शब्दादि गुण है / इस तरह संसार और शब्दादि विषय-गुण का पारस्परिक कार्यकारण भाव है / जो श्रोत्र, चक्षु, घाणा, रसना और स्पर्शन इन पांचों इन्द्रियों के शब्द, रूप, गन्ध, रस