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________________ 230 卐१-१-५-१ (४०)卐 श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन अब अन्य लक्षण कहतें हैं... नि. 140 गूढ सिरावाले पत्ते = जिनके सिरा = नस गुप्त हो... वे दो प्रकारके होतें हैं 1. क्षीरवाले 2. क्षीर रहित... प्रनष्ट संधि = जिनकी संधियां न हो, उन्हें अनंतकाय (साधारण-वनस्पतिकाय) समझीयेगा... इस प्रकार साधारण वनस्पतिकायके लक्षण कहनेके बाद अब नाम लेकर अनंतकाय बतातें हैं... नि. 141 सेवाल, कत्थभाणिक, अवक, पनक, किण्वहठ, आदि और ऐसे अन्य अनेक प्रकारके अनंतकाय- साधारण वनस्पतिकाय हैं.... . अब प्रत्येक वनस्पतिकायके एक, दो, संख्यात यावत् असंख्यात आदि जीवोंने ग्रहण कीये हुए शरीरको दृश्यत्व कहतें हैं... नि. 142 ताल, सरल (चीड का वृक्ष), नारीयेल आदिके स्कंध (थड) एक जीवके शरीर स्वरूप होतें हैं... और वे चक्षुग्राह्य (आंखोसे दिखाइ देतें हैं) होतें हैं... तथा बिस, मृणाल, कर्णिका, कुणक, कटाह आदि भी एक जीवके शरीर होते हैं, और वे भी चक्षुग्राह्य होतें हैं... इसी प्रकार दो, तीन, संख्यात और असंख्य जीवोंने ग्रहण कीये हुए प्रत्येक वनस्पतिकायके शरीर भी आंखोसे दृश्य-दिखतें हैं प्रश्न- क्या अनंतकाय भी ऐसे होते हैं ? उत्तर- ना, नहिं... यह बात नियुक्तिकी गाथासे कहतें हैं... नि. 143 एक-दो से लेकर असंख्य जीवोंका अनंतकायका शरीर आंखोसे दिखाइ नहि देतें, क्योंकि- ऐसे होते हि नहिं... अनंतकाय (साधारण वनस्पतिकाय) के शरीर एक, दो आदि असंख्य जीवोंका शरीर होता हि नहिं, किंतु अनंत जीवोंका हि शरीर होता है...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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