________________ छे. आ टीकाथी प्रभावित थइने श्री जिनदत्तसूरिओ 'गणधर सार्द्धशतक मां श्री शीलांकाचार्य विशे ‘लख्युं छे के आयारवियारण वयण चंदिया दलिय सयल संतावो। सीलंको हरिणकुव्व सोहइ कुमुयं वियासंतो। अर्थात् आचार (आचारांग सूत्र) नी विचारणा माटे वचन चंद्रिका वडे जेमणे सकल संताप दलित कर्या छे दूर कर्या छे अवा श्री शीलांकाचार्य हरिणांक (चंद्र) नी जेम कुमुदने विकसावे छे. आपणा श्रुतसाहित्यमा 'आचारांग सूत्र' नुं स्थान अनोखं छे. आपणां पिस्तालिस आगमोमां अगियार अंगो मुख्य छे. बाकीनां आगमोने अंगबाह्य तरीके ओळखवामां आवे छे. गणधरोओ रचेली द्वादशांगीमांथी हाल अगियार अंग उपलब्ध छे अने तेमां पण केटलोक भाग छिन्न भिन्न थयेलो छे. अगियारे अंगमा 'आचारांग सूत्र' मुख्य छे. अमां आचारधर्मनुं प्रतिपादन करवामां आव्युं छे अने अचारधर्म अ साधुजीवननो प्राण छे. * आपणा जैन शासनमां श्रुतज्ञाननी परंपरा अद्भुत अने सानंदाश्चय उपजावे ओवी छे. आपणने श्रुतसाहित्यनो जे खजानो मळ्यो छे ते भगवान श्री महावीर स्वामीना निर्वाण पछी हजारेक वर्ष सुधी तो कंठस्थ स्वरूपमां-गुरु शिष्यने कंठस्थ करावे ओ रीते सचवायेलो छे. वळी दरेक तीर्थंकर भगवान देशना अर्थथी आपे अने अमना गणधरो अने सूत्रमा गूंथी ले ओवी परंपरा छे. आवश्यक नियुक्तिमां श्री भद्रबाहु स्वामीओ कर्तुं छे के अत्थं भासइ अरहा सुत्तं गन्थन्ति गणहरा निउणं। सासणस्स हियवाए तओ सुत्तं पवत्तइ॥ .. तीर्थंकर भगवान शासन प्रवर्तावे ओ काळ विविध प्रकारनी अटली बधी लब्धिसिद्धिओथी सभर होय छे के- भगवान समवसरणमां गणधरोने त्रिपदी- उपन्नेइ वा विगमेइ वा धुवेइ वा- आपे अने गणधरो मुहूर्तमात्रमा द्वादशांगीनी रचना करे छे. 'श्री गौतमस्वामी अष्टक' मां कह्यु छे के श्री - वर्धमानात् त्रिपदीमवाप्य मुहूर्तमात्रेण कृतानि येन / अंगानि पूर्वाणि चतुर्दशापि स गौतमो यच्छतु वांछितं मे / / अर्थात् 'श्री वर्धमान स्वामी पासेथी त्रिपदी मेळवीने मुहूर्तमात्रमा जेमणे द्वादशांगीनी अने चौद पूर्वनी रचना करी छे अवा श्री गौतमस्वामी मारां वांछित आपो.' __आ द्वादशांथगीमां-बार अंगमां मुख्य ते आचारांग छे. भूतकाळमां अनंत तीर्थकरो थइ गया अने भविष्यमां अनंत तीर्थंकरो थशे. भूतकाळमां सर्व तीर्थंकरोओ प्रथम आचारनो उपदेश