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________________ श्री राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी- हिन्दी-टीका 1 - 1 - 1 - 4 7 7 जो अमुक दिशा / वा-अथवा / अणुदिसाओ-विदिशा में / एवं सव्वाओ दिसाओ-सभी दिशाओं। वा-प्रथवा। अणुदिसाओ-विदिशाओं में / अणुसंचरइ-भ्रमण करता है / सोऽहं-मैं वही हूं। IV सूत्रार्थ : कोइक जीव अपने जातिस्मरण ज्ञानसे अथवा तो तीर्थंकर आदिके उपदेशसे ऐसा जान शकता है कि- मैं पूर्व दिशासे आया हुं... यावत् अन्य दिशा या विदिशासे आया हुं... इस प्रकार कितनेक जीवोंको ऐसा ज्ञान होता है कि- मेरा आत्मा (भवांतरसे यहां आकर) उत्पन्न हुआ है कि जो इस दिशा या विदिशासे वारंवार संचरण (आवागमन) करता है... सभी दिशा और विदिशाओंसे जो आता है वह मैं हि हुं... ||4|| v टीका-अनुवाद : पूर्वके सूत्रमें जिसका निर्देश किया है, ऐसा विशिष्ट क्षयोपशमवाला वह आत्मा दिशा और विदिशाओंसे यहां मेरा आगमन हुआ है ऐसा जानता है... अर्थात् गत जन्ममें मैं देव या नारक या पशु या मानव था, और वहां भी स्त्री या पुरुष या नपुंसक था... एवं यहांसे आयुष्य पूर्ण होने पर जन्मांतरमें देव या मनुष्य या पशु या नारक बढुंगा... ऐसा विचार करता है... कहनेका तात्पर्य यह है कि- अनादि कालके इस संसारमें भटकनेवाला कोई भी जीव कौनसी दिशा या विदिशाओं से मेरा यहां आगमन हुआ है, ऐसा नहिं जानता... और जो जीव यह बात जानता है वह अपनी सन्मति से जानता है... यह सन्मति जीवको चार प्रकारसे होती है... 1. अवधिज्ञान 2. मनःपर्यवज्ञान. 3. केवलज्ञान और 4. जातिस्मरणशान... इन चारोंमेंसे अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान और केवलज्ञानका स्वरूप अन्य शास्त्र में विस्तारसे कहा है... और जातिस्मरणशान तो मतिज्ञानका हि एक प्रकार है... इस प्रकार चार प्रकारकी आत्माकी मति से कोइक जीव कौनसी दिशा या विदिशासे मेरा यहां आगमन हुआ है, और मैं यहां से कहां जाउंगा यह बात जानता है... कश्चित् याने कोडक उत्तम जीव याने तीर्थकर परमात्मा हि यह सब जानते हैं, या तो उनके उपदेशसे शेष सन्मतिवाले जीव भी जीवोंको और जीवोंके पृथ्वीकाय आदि विभिन्न भेदोंको तथा उनकी गति और आगति को जानते हैं... तथा तीर्थकरके सिवाय अन्य अतिशयज्ञानीओं के पास सुनकर भी जानते हैं... अब... वे जो कुछ जानते हैं, वह क्या है ? यह बात सूत्रके माध्यमसे कहते हैं... मैं पूर्व-दिशासे आया हुं... मैं दक्षिण दिशासे आया हुं... मैं पश्चिम दिशासे आया हूं... मैं उत्तर दिशासे आया हुं...
SR No.004435
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
PublisherRajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size10 MB
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