________________ #.9 - 1 - 1 - 2 // श्री राजेन्द्र यतीन्द्र जैनागम हिन्दी प्रकाशन सभी दिशाएं अंदरकी और से देखतें हैं तो रुचकसे लेकर सादि (आरंभवाली) है, और बहारकी और देखतें हैं तो अनंत अलोकाकाशको लेकर अपर्यवसित = अनंत है... दशों दिशाएं अनंत प्रदेशवाली होती है.. सभी दिशाओंके जितने प्रदेश है उनको चार संख्यासे भाग देने पण केवल चार हि शेष रहते हैं अतः आगमसंज्ञा से उन्हे "कडजुम्मा'' शब्दसे निर्देश किया है... आगम में कहा है कि - हे भगवन् / युग्म कितने प्रकारके होते हैं ? (उत्तर) है गौतम ! युग्म चार प्रकारके है ? 1. कृतयुग्म 2. ता-युग्म 3. द्वापर-युग्भ 4. कलि-युग्म... हे भगवन् ! ऐसा किस कारणसे कहा है ? हे गौतम ! जीस राशिको चार संख्यासे भाग देने से यदि चार शेष रहता है तब कृतयग्म... यदि तीन (3) शेष रहता है तब त्रेतायुग्म... यदि दो (2) शेष रहता तब द्वापर युग्म... और यदि एक शेष रहता है तब कलियुग्म कहते हैं... अब इन दिशाओंका संस्थान कहते हैं... नि. 46 चार महादिशाएं शकट = गाडीकी उध के आकार से... एवं चार विदिशाएं मोतीकी माला . के आकारसे है... और उर्ध्व एवं अधोदिशा रुचकके आकारसे है... अब ताप दिशा कहते है... नि. 47 तापयति इति तापः = जिस दिशाओंमे सूरजका उदय हो वह पूर्व दिशा... जहां सूर्य अस्त होगा वह पश्चिम दिशा... दायें = सीधे हाथकी और दक्षिण दिशा एवं बायें हाथकी और उत्तर दिशा... यह बात सूर्यके उगनेके समय सूर्यकी और मुह रखकर खडा रहनेसे सिद्ध होती है... ताप-दिशाके माध्यमसे विशेष बात यह है कि- मेरु पर्वत सभी क्षेत्रके लोगोंको उत्तर दिशा में हि माना गया है... क्षेत्र-दिशाके माध्यमसे रुचककी दृष्टि से वह भले हि मेरु से पूर्व या दक्षिण या पश्चिम या तो उत्तर दिशामें हो... किंतु ताप दिशासे तो सभी लोगोंको मेरु उत्तरमें ही रहेगा... नि. 50 ताप-दिशाके माध्यमसे सभी के लिये - मेरु उत्तरमें लवण समुद्र दक्षिण में सूर्यका उदय : पूर्व में सूर्यका अस्त - पश्चिम दिशामें...