________________ भिक्षुओं को यहाँ बुलाकर कहना कि तुम्हें जैनाचार्य हरिभद्रसूरि के साथ वाद-विवाद करना है। जो हारेगा उसको गरमागरम तेल के कुंड में गिरना होगा। * लिखित वच इदं पणे जितो यःस विशतु तप्तवरिष्टतैलकुण्डे१० / राजा ने बौद्ध आचार्य को बुलाकर सारी बात बता दी। वाद-विवाद निश्चित हो गया। वाद का प्रारंभ हुआ। दूसरी ओर कुंड में गरमगरम तेल भर दिया गया। बाद में आचार्य हरिभद्र ने स्याद्वाद के अभेद्य कवच का आश्रय लेकर अपने सिद्धांतो की रक्षा करते हुए अपने अकाट्य सिद्धान्तों से बौद्ध आचार्य को पराजित किया और बौद्ध सिद्धान्तों को धराशयी कर दिया। हारे हुए बौद्धाचार्य को तेल के कुंड में डाल दिया गया। तत्पश्चात् एक के बाद एक ऐसे पाँच छ: बौद्ध भिक्षु हार गये, सभी तेल के कुण्ड में डाल दिये गये। वे सभी मृत्यु की गोद में समा गये। समगतं च तथैव पञ्चषास्ते निधनमवापुरनेन निर्जिताश्च।११ बौद्ध भिक्षुओं में ऐसी मृत्यु से हाहाकार मच गया। लोग बौद्ध देवी तारा को कठोर वचनों से उपालम्भ देने लगे कि - हे देवी तारा ! भिक्षु कुमरण विधि से मारे जा रहे है। इस समय तू कहाँ गई? तारादेवी ने उन सभी को कहा कि यह नयपथ का पथिक मुनि है। तुम इनके साथ वाद-विवाद मत करो और अपने-अपने स्थान पर चले जाओ। इतना कहकर देवी तिरोहित हो जाती है और देवी के वचनानुसार सभी अपने-अपने देश चले जाते है। दूसरे वृद्ध भी उपशान्त हो जाते है। इस विषय में अलग-अलग मन्तव्य प्राचीन ग्रन्थो में मिलते है। प्रभावक चरित्र में इस प्रकार हैइह किल कथयन्ति केचिदित्थं गुरुतरमन्त्रजाप प्रभावतोऽत्र। सुगतमतबुधान् विकृष्य तप्ते ननु हरिभद्रविभुर्जुहाव तैले॥२ अर्थात् अपने दो शिष्यों की मृत्यु से क्रुद्ध हुए हरिभद्रसूरि ने महामंत्र के प्रभाव से भिक्षुओं को आकर्षित कर आकाशमार्ग से ला-लाकर गरम-गरम तेल के कुण्ड में डाल दिया। .. "पुरातन प्रबंध संग्रह'१३ नाम के ग्रन्थ में कहा गया है कि बौद्ध भिक्षुओं के प्रति प्रचंड क्रोध पैदा होने पर हरिभद्रसूरि ने उपाश्रय के पीछे गरम-गरम तेल का बहुत बड़ा भाजन तैयार करवाया और मंत्र प्रभाव से बौद्ध भिक्षु आकाशमार्ग में आकर गिरने लगे। 700 बौद्ध भिक्षु इस प्रकार मर गये। ___ उधर चित्रकूट में गुरुदेव जिनभट्टसूरि को बौद्ध भिक्षुओं के विनाश की और हरिभद्र के प्रचंड कषाय की बात मालूम हुई, तब उन्होंने उनको शान्त करने के लिए तीन गाथाएँ देकर दो साधुओं को उनके पास भेजें। वे गाथाएँ इस प्रकार है। गुणसेन - अग्गिसम्मा सीहानंदा य तह पिआपुत्ता। सिहि - जालिणी माइ, सुआ धण धणसिरिमोय पइभजा / / जय - विजया य सहोअर धरणोलच्छी अ तह पईभज्जा। [ आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VI | प्रथम अध्याय | 9 |