SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ | शुभकामना | भारत वर्ष के अनेकानेक महापुरुषों, ऋषि-मुनियों की जन्म भूमि एवं तीर्थंकरो की कल्याणक भूमि की पैदल स्पर्शना करते हुए विभिन्न तपस्याओं के साथ मासक्षमण (एक मास के निराहारी उपवास) वर्षीतप जैसी कठिन तपस्याओं से जीवन को सुगंधित बनाकर, गुरु आज्ञा को शिरोधार्य मानकर, गुरु शिष्याओं को अपनी बहन जैसा स्नेह देकर, संस्कृत प्राकृत भाषाओं का अध्ययन करते-करवाते हुए, चारित्र जीवन के सुंदर स्वरुप को समझते हुए, अनेकानेक ग्रंथों का अध्ययन करते हुए, परम पूज्या साध्वीजी श्री अनेकांतलताश्रीजी ने पुरोहित समाज में जन्मे 1444 ग्रन्थों के रचयिता प.पू. श्रीमद्विजय हरिभद्र सूरीश्वरजी की जीवन गाथा को अनुसंधानित किया है। परम पूज्या साध्वीजी द्वारा पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी की जीवन गाथा एवं पावन कृतित्व पर किया गया अद्वितीय शोधकार्य जाति धर्म से ऊपर उठकर सभी धर्मावलंबियों के लिए हितोपदेशक रहेगा। जन-जन के लिए मोक्ष की राह बनेगा। हम ऋणी है परम पूज्य राष्ट्रसंत शिरोमणि, सुविशाल गच्छाधिपति, उग्रविहारी, संयमदानेश्वरी, वचनसिद्ध, आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय जयंतसेन सूरीश्वरजी के जिन्होंने पी.एच.डी. करने की आज्ञा प्रदान की। हम ऋणी है गुरु दादी विदुषी साध्वीजी श्री लावण्यश्रीजी के जिनकी सदैव हम पर कृपा रही है। हम ऋणी है हमारी परम उपकारी गुरुगुण गुणी गुरु माता साध्वीजी श्री कोमललताश्रीजी के जिन्होंने माँ का वात्सल्य प्रदान किया। हम ऋणी है गुरु शिष्याओं के जिन्होंने वैयावच्च में बहनों जैसा स्नेह दिया। जालोर निवासी पंडितजी श्री हीरालालजी शास्त्रीजी, जिन्होंने आपको पी. एच.डी. हेतु मार्गदर्शन दिया। - हरजी निवासी पंडितजी श्री गोविन्दरामजी, जिन्होंने विहार में साध्वीजी की अनुकूलता को ध्यान में रखकर अपना घर छोडकर हजारों किलोमीटर दूर जाकर अध्ययन करवाया / इन दोनों विद्वद्वर्य 'के हम सणी है। - हम ऋणी है श्री आनन्द प्रकाशजी त्रिपाठीजी, प्रोफेसरश्री विश्वविद्यालय लाडनूं, के जिन्होंने मार्गदर्शन देकर कंटीले मार्ग को गुलाब के फूल की तरह कोमल, सुगम व सुगंधित बनाया। हम ऋणी है उन सभी संघों का, ज्ञान भंडारों का, युवाओं एवं युवतियों का जिन्होंने अनेकानेक ग्रन्थों को अनेकानेक वाचनालयों में से खोज-खोज कर विहार में जगह-जगह पहुंचाया। जहाँ धन की जरूरत पडी वहां उदार दिल से उदारता का परिचय दिया। प्रोफेसर डॉ. अरुणजी दवे भीनमाल ने विशेष रूप से अशुद्धि संशोधन में व शैक्षणिक संस्थाओं से पत्र व्यवहार के कठिन कार्य में सहायता की है। हम मणी है उस प्रेस के जिन्होंने पुस्तक को इतने सुन्दर स्वरुप में प्रस्तुत किया। पूज्य साध्वीजी श्री अनेकान्तलता श्रीजी म.सा. ने इस ग्रन्थ को लिखकर भीनमाल (राज.) का ही नहीं बल्कि सभी संघों का, सभी धर्मों का एवं हमारे कावेडी परिवार का गौरव बढाया है।
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy