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________________ बंध - त्रस स्थावर जीवों का बन्ध तथा वध करना, त्वचा का छेदन, वृक्ष की छाल आदि उपाटना। पुरुष, हाथी, घोड़ा, बैल, भैंस आदि के ऊपर प्रमाण से ज्यादा डालता और उन्हीं के पुरुष, पशु आदि के अन्न पान का निरोध कर देना, समय पर उनको खाने पीने को नहीं देना अथवा कम देना ये पाँच अतिचार है। पञ्चाशक की टीका एवं धर्मबिन्दु की टीक में आवश्यकचूर्णि का उद्धरण देकर बंध की विधि इस प्रकार बताई है दो पाँव वाले अथवा चार पाँव वाले प्राणिओं का बंध सकारण और निष्कारण ऐसा दो प्रकार से है उसमें निष्कारण बन्ध योग्य नहीं है, सकारण बंध भी सापेक्ष और निरपेक्ष दो प्रकार से है निर्दय बनकर अतिशय मजबूत बांधना वह निरपेक्ष बंध, आग आदि के प्रसंग में छोड़ सके इस प्रकार से गाढ़ कारण आदि से बांधना सापेक्ष है। दो पाँव वाले दास, दासी, चोर, पढ़ने में प्रमादी पुत्र आदि की बांधने की जरूरत पड़े तो चल सके, इधर-उधर हो सके और अवसर आने पर छूट सके इस प्रकार शिथिल बंधन से बांधना चाहिए जिससे आग आदि के प्रसंग में मृत्यु का भय न रहे। परमार्थ से तो श्रावक को दो पाँव वाले बिना बांधे रह सके ऐसे ही रखने चाहिए। 2. वध-वध में भी बंध के समान ही जानना चाहिए, उसमें निरपेक्ष वध अर्थात् निर्दयरूप से मारना सापेक्ष वध यानि मारने का प्रसंग आये तो मर्म स्थान को छोड़कर लात एवं दोरी से एक दो बार मारना / ____3. छविच्छेद - छविच्छेद भी बंध के समान ही जानना, निर्दय रूप से हाथ, पैर, कान, नाक आदि का छेद करना यह निरपेक्ष छविच्छेद है। शरीर में गुमडा,घा, चाँदी आदि के कारण काटना, जलाना आदि सापेक्ष छविच्छेद है। 4. अतिभार-श्रावक पशु आदि के ऊपर न्याय भार से अधिक बोझा लादना जैसे कि घोडागाडी आदि में अधिक सवारियों को समयसर नहीं छोड़ना। 5. भक्तपान विच्छेद - आहार पानी विच्छेद किसी का भी न करना अन्यथा अतिशय भूख से मृत्यु हो जाती है। भक्तपान भी सकारण निष्कारण आदि बंध के समान ही जानना। इन पाँचो को अहिंसाणुव्रत अतिचार इसलिए कहा है कि इनके करते हुए अहिंसाणुव्रत का सर्वथा भंग नहीं होता। 2. स्थूल मृषावाद विरमणव्रत - स्थूल और सूक्ष्म के भेद से असत्यभाषण दो प्रकार का है। दूषित मनोवृत्ति से स्थूल वस्तु विषयक जो असत्य भाषण किया जाता है वह स्थूल मृषावाद कहलाता है। संक्षेप में वह .5 प्रकार का है। 1. कन्यालीक २.गावालीक 3. भूमि विषयक अलीक 4. न्यासापहरण 5. कूटसाक्ष्य। ... थूलमुसावायस्स य विरइ सो पंचहा समासेण।७८ 1. कन्यालीक-कन्या के विषय में झूठ बोलना। 2. गाय अलीक-कम दूध देनेवाली गाय को अधिक दूध देने वाली तथा अधिक दूध देनेवाली गाय को आचार्य हरिभद्रसूरि का व्यक्तित्व एवं कृतित्व VIIIIIII IIIIIA चतुर्थ अध्याय | 259 |
SR No.004434
Book TitleHaribhadrasuri ke Darshanik Chintan ka Vaishishtya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnekantlatashreeji
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trsut
Publication Year2008
Total Pages552
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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