________________ शिव संकल्पम् ___-पं. हीरालाल शास्त्री जालोर जागरह ! णरा णिच्चं जागरमाणस्स बड्डते बुद्धी। . नि. भा. जिनखोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ / / व्यक्ति की निरन्तर ज्ञान मार्ग में, कर्म क्षेत्र में या आध्यात्मिक साधना में यदि दृढ निश्चय इच्छा शक्ति हो तो वह अपने समग्र शिवसंकल्प पूर्ण कर लेता है। इच्छा शक्ति की प्रबलता सभी अन्तरायों को नष्ट कर अपने गन्तव्य का लक्ष्य पूर्ण कर लेती है। जो जागृत है उसकी सम्यक् साधना सफलता का प्रतिवचन है। ऐसी ही एक विलक्षण प्रतिभा जो जिनशासन में दीक्षार्थी के स्वरूप में उदीयमान हुई। साध्वी प्रवरा कोमललताश्रीजी के पावन सान्निध्य में दीक्षा ग्रहण कर अनेकान्तलताश्रीजी अपने अध्ययन क्षेत्र में दृढ इच्छा से तपस्या करती हुई एम.ए. संस्कृत में प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर पी.एच.डी. की तैयारी में साधनायुक्त कर्मयोगी बनी। मैं तो आपके मार्गदर्शन में निमित्त मात्र बना हूँ। निमित्त बनना भी मेरे किसी पुण्य का ही प्रतिफल है। हायर सेकन्डरी से एम.ए. तक मेरा मार्गदर्शन रहा, यह मेरे लिए भी सौभाग्य ही है। आपने अन्ततोगत्वा पी.एच.डी. का संकल्प पूर्ण कर ही लिया इसके लिये आप अभिनन्दन के योग्य है। आपने पी.एच.डी. का विषय भी प्रतिभा के योग्य ही चयन किया। 'आचार्य श्री हरिभद्र सूरि के दार्शनिक चिन्तन का वैशिष्ट्य" जिसमें प्रथम अध्याय में आचार्यश्री का व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर गवेषणा पूर्वक अपने विचारों को प्रगट किया है। आपने आचार्यश्री की दार्शनिकता, आत्मवाद पर, लोकचिन्तन, अनेकान्तवाद, जैन दर्शन एवं आगमों के तात्विक चिन्तन पर गहनता से विचार कर अभिव्यक्ति की है। द्वितीय अध्याय में तत्त्व मीमांसा को सरल भावों में अभिव्यक्त किया है। सतावधारणा, लोकवाद, यायिक, तत्त्वचिन्तन, वैशेषिक तत्त्वचिन्तन का अनेकान्त के साथ सामंजस्य बड़ी अनूठी युक्तियों से अभिव्यक्त किया है। तृतीय अध्याय ज्ञान मीमांसा मति श्रुत का साधर्म्य पदार्थों की ज्ञेयता का आधार आदि पर अतीत का नवनीत प्रस्तुत किया है। संपूर्ण ग्रन्थ के सात अध्याय विशेषता के पर्याय है। जैन दर्शन के जिज्ञासु एवं श्रमणोपासना में यह ग्रन्थ कौमुदी के समान ज्ञानमार्ग को प्रकाशित करने जैसा है। ____आपके निरन्तर परिश्रम का परिपाक यह ज्ञान ग्रन्थ अध्ययन के लिए विशेष उपयोगी होगा। इन्हीं शुभ कामनाओं के साथ....