________________ 156 क्रमाङ्कः पाठः 185. धिग् धिङ्मे धर्मवैमुख्यं पृष्ठाङ्कः 105 श्रीजैनधर्मवरस्तोत्रम् ग्रन्थादिसूचनम् पद्मा० 18, 114 112 12, 25 94 भगवत्यां सू० 1 भग० सू० 3 94 114 22 27 186. न ते नरा दुर्गतिमाप्नुवन्ति 187. न भूतपूर्व(ो) न च केन 188. नमो अरिहंताणं 189. नमो बंभीए लिवीए 190. नमो सुयस्स 191. न राज्ञा सह मित्रत्वं 192. नवकारइक्कअक्खर 193. नागो भाति मदेन कं जलरुहै: 194. नाच्छादयति कौपीनं 195. नाणं च दंसणं चिय 196. नानेकान्तं प्रतिक्षिपेत् 197. नायं हित्वा क्रमं नायं 198. नीचैर्गोत्रमविनयो१९९. नूतनार्हद्वरावास२००. नृभ्यो नैरयिकाः सुराश्च निखिलाः 201. नेत्रैर्निरीक्ष्य बिलकण्टक० 202. नैकं पुष्पं द्विधा कुर्यान्२०३. नैतया कति पतित्वधारिणो 204. नो वापी नैव कूपो न च 205. नो सेव्योऽन्यनरस्त्वया मयि गते 206. न्याग्रोधं दुर्लभं पुष्पं वीतराग० 8 प्रबोधचिन्तामणौ 100 78 52 लोकतत्त्व० 118 . पद्मा० 17, 231 207. पक्षपातो न मे वीरे लोक० 208. पक्षस्तु मासार्धे हैमाने० 568-569 209 पंचिंदियसंवरणो 210. पंचमहव्वयजुत्तो 211. पंचमहव्वयपरिपा० 1. प्रेक्ष्यतां उपदेशतरङ्गिणी (पृ० 191) / 2. समीक्ष्यतां श्राद्ध०वृत्तिः ( पृ० 117) / 23 39