________________ श्रीजैनधर्मवरस्तोत्रम् ग्रन्थादिसूचनम् पृष्ठाङ्कः 26 119 पद्मा० 17, 342 18 72 152 क्रमाङ्कः पाठः 77. कुलस्त्रिया न गन्तव्यं 78. कर क्ष)तोऽसि युद्धनिखिलैर्न 79. कृषौ सुवातः किल वृद्धिहेतुः 80. कृष्णागुरुप्ररचितं कृष्णात् प्रार्थय मेदिनी धनपते० 82. कृत्वा पापसहस्त्राणि के न पूर्वमभवन् भुवो धवा 84. कोकिलानां स्वरो रूपं को ब्रह्मण्यात्मनि रवौ कौतुकं निर्मणीच्छाया क्रूरस्वभावे ! करुणाविहीने ! क्रोधः परितापकरः 22 83. पद्मा० 17, 230 118 111 हैमाने० 1-5 हैमाने० 3, 635-636 .. 8. प्रशम० 26 ख 12 89. खण्डखण्डेषु पाण्डित्यं 90. खंतस्स दंतस्स जइंदियस्स 91. खरं श्वानं गजं मत्तं 102 89 101 92. गतानुगतिको लोको 93. गम्यते यदि मृगेन्द्रमण्डलं 94. गर्जः गजः 95. गाहा हुई अणाहा 96. गिरौ गुहायां विजने वनान्तरे 117 शब्द० 79 97. चक्री स चक्रभ्रमतो बभूव 118 98. चण्डी दुर्विनया स्वयं कलहिनी 99. चत्तारि अट्ठ दस० 100. चित्तं चहुटुं थणमंडलम्मि 102 101. चैत्रमास्यां (? मासि चैत्रे ) पूर्णमास्यां 106 102. चित्तं चेयण सन्ना 103. चुल्लगपासगधन्ने पद्मा० 18, 173