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________________ 45 3. अव्यक्तिक-भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के दो सौ चौदह वर्ष पश्चात् श्वेताम्बिका नगरी * में अव्यक्तवाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्रवर्तक आचार्य आसाढ़ के शिष्य थे। अव्यक्तवादी ये शिष्य अनेक थे। अतएव उनके नामों का उल्लेख उपलब्ध नहीं है। मात्र उनके पूर्वावस्था के गुरु का नामोल्लेख किया गया है। नवांगी टीकाकार ने भी इस आशय का संकेत किया है। 4. सामुच्छेदिक-भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के दो सौ बीस वर्ष के पश्चात् मिथिलापुरी में समुच्छेदवाद की उत्पत्ति हुई / इनके प्रवर्तक आचार्य अश्वमित्र थे / ये प्रत्येक पदार्थ का सम्पूर्ण विनाश मानते हैं, एवं एकान्त समुच्छेद का निरूपण करते हैं। 5. द्वैक्रिय-श्रमण भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के दो सौ अट्ठाईस वर्ष पश्चात् उल्लुकातीर नगर में द्विक्रियावाद की उत्पत्ति हुई। इसके प्रवर्तक आचार्य गंग थे। ये एक ही साथ दो क्रियाओं __ का अनुवेदन मानते हैं। . 6. त्रैराशिक-श्रमण भगवान् महावीर के परिनिर्वाण के पांच सौ चवालीस वर्ष पश्चात् अन्तरंजिका नगरी में त्रैराशिक मत का प्रवर्तन हुआ। इसके प्रवर्तक आचार्य रोहगुप्त (षडुलूक) थे / उन्होंने दो राशि के स्थान पर तीन राशियाँ मानी। 7. अबद्धिक-श्रमण भगवान् महावीर के निर्वाण के पाँच सौ चौरासी वर्ष पश्चात् दशपुर नगर में अबद्धिक मत का प्रारम्भ हुआ। इसके प्रवर्तक आचार्य गोष्ठामाहिल थे। इनका यह मन्तव्य था कि कर्म आत्मा का स्पर्श करते हैं किन्तु उनके साथ एकीभूत नहीं होते / इन सात निह्नवों में जमाली, रोहगुप्त और गोष्ठामाहिल-ये तीनों अन्त समय तक अलग रहे / शेष चार निह्नव भगवान् महावीर के शासन में पुनः मिल गये। ' - इन सभी तापसों, परिव्राजकों और श्रमणों के मरण के पश्चात् विभिन्न पर्यायों में जन्मग्रहण करने के उल्लेख हैं। ये उल्लेख इस बात के द्योतक है कि कौन साधक कितना अधिक साधना-सम्पन्न है ? जिसकी जितनी अधिक निर्मल साधना है. उतना ही वह अधिक उच्च देवलोक को प्राप्त होता है। कर्मो का पूर्ण क्षय होने पर मुक्ति होती है। इसलिए केवली समुद्घात का भी निरूपण है। केवली समुद्घात में आत्मप्रदेश सम्पूर्ण लोक में फैल जाते हैं। इसकी तुलना मुण्डक उपनिषद् के 'सर्वगतः' से की जा सकती है। ___मुक्त आत्माओं की विग्रहगति नहीं होती, मुक्त होते समय साकारोपयोग होता है / सिद्धों की सादि अपर्यवसित स्थिति को द्योतित करने के लिए दग्ध बीज का उदाहरण दिया गया है। सिद्ध होनेवाले जीव का सहनन, संस्थान, जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहना, सिद्धों का निवास-स्थान, सर्वार्थसिद्ध विमान के ऊपरी 1. चउदस दो वाससया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स / अव्वत्तगाण दिट्ठी, सेअविआए समुप्पन्ना ।।-आवश्यक भाष्य, गाथा, 129 2. सोऽमव्यक्तमतधर्माचार्यो, न चायं तन्मतप्ररूपकत्वेन किन्तु प्रागवस्थायामिति / -स्थानांग वृत्ति, पत्र 391. 3. वीसा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स / सामुच्छेइअदिट्ठी, मिहिलपुरीए समुप्पन्ना // -आवश्यक भाष्य, गाथा-१३१ 1. अट्ठावीसा दो वाससया तइया सिद्धिं गयस्स वीरस्स / दो किरियाणं दिट्टी उल्लगतीरे समुप्पन्ना ।-आवश्यक भाष्य, गाथ 2. पंच सया चोयाला तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स / पुरिमंतरंजियाए तेरासियदिट्ठी उप्पन्ना // -आवश्यक भाष्य गाथा-१३५ 3. पंचसया चुलसीया तइया सिद्धि गयस्स वीरस्स / अबद्धिगाण दिट्ठी दसपुरनयरे समुप्पन्ना / / -आवश्यक भाष्य, गाथा-१४१ 4. मुण्डक उपनिषद् - 12116
SR No.004431
Book TitleUvavai Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2012
Total Pages362
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size7 MB
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