________________ श्रमण संस्कृतियों में से जैन संस्कृति बौद्ध संस्कृति से प्राचीन है। जैकोबी ने बौद्ध धर्म की अपेक्षा जैन धर्म की प्राचीनता एवं बौद्ध धर्म से पृथकत्व को बहुत से प्रमाणों द्वारा सिद्ध किया है। हॉपकिन्स तथा कोलबुक का भी यही मत है कि जैनधर्म दोनों में से अधिक प्राचीन है क्योंकि यह अध्यात्मवाद में विश्वास करता हुआ यह मानता है कि हर एक पदार्थ में जीवन है। अत: यह स्पष्ट होता है कि प्राचीनतर श्रमण संस्कृति जैन संस्कृति है। पुरातत्व-ध्वंसावशेषों द्वारा प्राचीनता पुरातत्व की दृष्टि से हड़प्पा तथा मोहन-जोदड़ो की सभ्यता के अवशेषों से भी इसकी ऐतिहासिकता ज्ञात होती है। इस सम्बन्ध में यह कथन द्रष्टव्य है-“सिन्धु घाटी की मुद्राओं में अंकित न केवल बैठी हुई देव मूर्तियाँ योग मुद्रा में हैं और वे . उस सुन्दर अतीत में योग मार्ग के प्रचार को सिद्ध करती हैं अपितु खड्गासनस्थ देव मूर्तियाँ भी योग की कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित हैं। यह कायोत्सर्ग मुद्रा विशेषतः जैन है, आदिपुराण (15.3) में ऋषभदेव के तप के सम्बन्ध में कायोत्सर्ग मुद्रा का उल्लेख है। जैन तीर्थंकर ऋषभदेव के कायोत्सर्ग मुद्रा में स्थित एक खड्गासनस्थ मूर्ति (द्वितीय शताब्दी ईस्वी) मथुरा संग्रहालय में है। इस मूर्ति की शैली उससे बिल्कुल मिलती है।" मोहन-जोदड़ो में और हड़प्पा में जो खुदाई हुई, उसके अवशेषों का अध्ययन करके विद्वानों ने उसकी संस्कृति को सिन्धु संस्कृति नाम दिया था और खुदाई में सबसे निम्न स्तर पर मिलने वाले अवशेषों को वैदिक संस्कृति से भी प्राचीन संस्कृति के अवशेष कहा है। भारत के बाहर भी जैन धर्म का प्रसार पुरातन काल में रहा है। कुछ वर्ष पूर्व आस्ट्रिया के बुडापेस्ट नगर के समीपवर्ती खेत में एक किसान को भगवान् महावीर की मूर्ति प्राप्त हुई थी। गम्भीरता पूर्वक अन्वेषण द्वारा जैन धर्म के विषय में कई महत्वपूर्ण तथ्य प्रकाशित हो सकते हैं। एक पुरातत्ववेत्ता का कथन है-“अगर हम दस मील लम्बी त्रिज्या लेकर भारत के किसी भी स्थान को केन्द्र बना वृत्त बनावें तो उसके भीतर निश्चय से जैन भग्नावशेषों के दर्शन होंगे। जैन पुरातत्व की महत्वपूर्ण सामग्री को प्रान्त धारणाओं के कारण बौद्ध सामग्नी घोषित कर दिया है। इसके अलावा ऐतिहासिक शिलालेखों में भी जैन धर्म का उल्लेख दृष्टिगोचर होता है। विभिन्न विद्वानों की दृष्टि में ... जैनधर्म की प्राचीनता केवल महावीर तक ही नहीं बल्कि उसके भी बहुत पूर्व की है। भगवान् महावीर को जैन धर्म का संस्थापक मानकर वहीं से जैन धर्म का आदिकाल समझना भ्रान्ति है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार “ईसा से एक शताब्दि पूर्व भी ऐसे लोग थे जो ऋषभदेव की पूजा करते थे। जो सबसे पहले तीर्थंकर थे। . 11 / पुराणों में जैन धर्म