________________ संहारेच्छापि नैतस्य भवेदप्रत्ययात्मन: न च कैश्चिदसौ ज्ञातुं कदाचिदपि शक्यते / / न च तद्वचने नैव प्रतिपत्ति: सुनिश्चिता। असृष्टावपि ह्यसौ ब्रूयादात्मैश्वर्य प्रकाशनात् / / -कुमारिलभट्ट भट्ट 'श्लोकवार्तिक' अ. 3 श्लो. 45-49, 52, 50, 57-60 (क्षुल्लक निजानन्दजी म. “ईश्वर-मीमांसा" पृ. 397-399) 9. (अ) कारणमीश्वरमेके ब्रुवते कालं परे स्वभावं वा प्रजाः कथं निर्गुणतो व्यक्त: काल स्वभावश्च / / –ईश्वर कृष्ण ‘सांख्यकारिका' (ब) 'ईश्वर-मीमांसा' पृ. 537 10. डॉ. राधाकृष्णन “भारतीय दर्शन" पृ. 267 (प्रथम खण्ड) 11. न चेच्छाशक्तिरीशस्य कर्माभावोऽपि युज्यते .. वदिच्छा वाऽनभिव्यक्ता क्रिया हेतुः कृतोऽज्ञवत् / / --आचार्य विद्यानन्दि “आप्तपरीक्षा" 12. ज्ञानशक्त्यैव नि:शेष कार्योत्पत्तौ प्रभुः किल: सदेश्वर इति ख्यातेऽनुमान निदर्शनात् / / -वही 13 13. निग्रहानिग्रही देहं स्वं निर्मायान्यदेहिनाम् करोतीश्वर इत्येतन्न परीक्षाक्षमं वचः॥ -वही 18 14. देहान्तरादिना तावत् स्वदेहं जनयद्यदि तदा प्रकृतकार्येऽपि देहाधानमनर्थकम् // देहान्तरात्स्वदेहस्य विधाने चानवस्थिति: तथा च प्रकृत कार्यं कुर्यादीशो न जातुचित् / / -वही 19-20 वही 16. A "God is in no sense the creator of the Universe. All imperishable things are actual Sun, Moon, while visible heaven is always active, there is no time that they will stop. If we attribute these gifts to God, we shall make him either an incompetent judge or an unjust one and it is aliei. to his nature. Happiness which God enjoys is as great as that which we can enjoy sometimes. It is marvellous." Aristole B. The first question, which arises in connection with the idea of creation is, why should God make the world at all? One symstem suggests, that he want to make the world, because it Rleased him to do so. Another, that he left lonely and wanted company. A third, that he wanted to create beings who would praise his glory and worship. A fourth, that he does it in sport and so on. Why should it please the creator to create a world, where sorrow and 261 / पुराणों में जैन धर्म 15.