________________ 121. शिव पुराण 7.2.39.28 122. शिव पुराण (2) पृ. 444, श्लो. 50 123. वही, श्लो. 53 124. . इसिभासियाई 22.14 125. सागरमल जैन "जैन साधना में ध्यान "श्रमण" जनवरी-मार्च, 1994 126. लिंग पुराण (2) पृ. 741, श्लो. 92-93 127. मा चिट्ठह मा जंपह मा चिन्तह किवि जेण होई थिरो अप्पा अप्पमिरओ इणमेव परं हवे ज्झाणं / / -बृहद्रव्यसंग्रह 56 128. वही.४८ 129. “ध्यै चिन्तायां स्मृतो धातुश्चिन्तात्वे सुनिश्चिता एतद् ध्यानमिह प्रोक्तं सगुणं निर्गुणं द्विधा" सगुणवर्णभेदेन निर्गुणं केवलसम्मतम् समंत्रं सगुणं विद्धि निर्गुणं मंत्रवर्जितम्॥ -स्कन्दपुराण (2) पृ. 126-127, 53.81-82 130. ध्यानं निर्विषयं प्रोक्तमादौ सविषयं तथा। . -लिंगपुराण (2) पृ. 41. श्लो. 86 131. स्थानांग 4.65 132. स्थानांग 4.69 133. सं. डॉ. नरेन्द्र भानावत “जैन संस्कृति और राजस्थान” पृ. 57 (योग - मुनि सुशील कुमार) . 134. जं किंचिवि चिंततो गिरीहवित्ती हवे जदा साहू लणय एयत्तं तदाहु तं तस्स णिच्छयं झाणं / / -बृहद्व्य संग्रह, 55 135. स्वात्मानं स्वात्मनि स्वेन ध्यायेत्स्वस्मै स्वतो यत: षट्कारकमयी तस्माद, ध्यानमात्मैव निश्चयात् / / -तत्त्वानुशासन, 74 136. कुन्दकुन्दाचार्य “मोक्षप्रामृत” गा 23-100 137. तदेवार्थ मात्रनिर्भासं स्वरूपं शून्यमिव समाधिः / -योगदर्शन, 3.3 138. निर्वाणानलवद् योगी समाधिस्थ प्रगीयते / / .. न शृणोति न चाघाति न जल्पति न पश्यति न च स्पर्श विजानाति न संकल्पयते मनः / / ____यथा दीपो निर्वातस्थ: स्पंदते न कदाचन - . ' तथा समाधिनिष्ठोऽपि तस्मान विचलेत् सुधीः॥ -शिवपुराण वायु सं. 3.38 अ 139. वही .. 140. ध्येयमेव हि सर्व ध्येयस्तन्मयतां गतः पश्यति द्वैतरहितं समाधिः सोऽभिधीयते // मन: संकल्परहित-मिन्द्रियार्थान्न चिन्तयेत् यस्य ब्रह्माणि संल्लीनं समाधिस्थत्वमुच्यते // -गरुडपुराण (2) पृ. 182, श्लो. 29-30 141. आचारांग 1.8 142. नरेन्द्र भानावत 'जिनवाणी' (ध्यानयोग : रूप और दर्शन) पृ. 68 'समाधि और अध्ययन' . 217 / पुराणों में जैन धर्म