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________________ ( विषय प्रवेश भारतीय वाङ्मय में अनेक प्रकार के साहित्य उपलब्ध होते हैं, जिनमें दर्शन साहित्य का स्थान भी महत्त्वपूर्ण है। दर्शन-साहित्य अति विस्तृत है जिसकी कई शाखाएँ एवं प्रतिशाखाएँ हैं। प्रमुख भारतीय दर्शन अग्रलिखित हैं-चार्वाक, जैन, बौद्ध, न्याय-वैशेषिक, सांख्य-योग, मीमांसा-वेदान्त / / ..हमारे शोधकार्य का विषय है "पुराणों में जैनधर्म"। यह दो दर्शनों से सम्बन्धित है वैदिक दर्शन तथा जैन दर्शन। पुराण वैदिकदर्शन से सम्बद्ध हैं, वैदिक संस्कृति के प्रमुख ग्रन्थ हैं; फिर भी उनमें जैनदर्शन सम्बन्धित विषय वस्तु तथा जैनधर्म सम्मत सिद्धान्त पर्याप्त मात्रा में दृष्टिगोचर होते हैं। जैनदर्शन सम्मत सिद्धान्त पुराणों में यत्र-तत्र विकीर्ण हैं। उनका सुव्यवस्थित रूप से अध्ययन अभी तक किसी ने नहीं किया है। यह विषय अभी तक अछूता ही है। ... पुराण एवं जैनदर्शन के सिद्धान्तों में पर्याप्त मात्रा में भिन्नता होते हुए भी कई स्थानों पर समानता परिलक्षित होती है। ऐसे कई स्थल वेद-पुराण आदि ग्रन्थों में पाये जाते हैं जिनमें जैनधर्म का उल्लेख तथा तत्सम्मत सिद्धान्तों का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। यद्यपि दोनों की मूलभूत विशेषताओं में पर्याप्त अंतर है; तथापि पुराणों में जैनदर्शन सम्बन्धित प्रचुर सामग्री उपलब्ध होती है। यही नहीं कई स्थलों पर जैन मूल्यों की वैदिक व्याख्या भी की गई है। चिन्तन की उदारता के कारण प्रवृत्तिवादी होते हुए भी पुराणों में निवृत्तिवादी श्रमण-परम्परा का उल्लेख स्पष्टतः दृष्टिगोचर होता है। प्रस्तुत शोधकार्य में इस चिन्तन की उदारता का तथा प्रवृत्ति एवं निवृत्ति के सुन्दर सुमेल का भी दर्शन होगा। ___ भिन्न-भिन्न संस्कृतियों से सम्बद्ध होते हुए भी इन दोनों में अनेक समानताएँ हैं। जैनदर्शन में अनेकान्तवाद एक ऐसा प्रमुख सिद्धान्त है कि जिससे प्रत्येक तत्व का अनेक दृष्टियों से सर्वांगीण चिन्तन किया जा सकता है। लगभग हर दर्शन में ऐसे कई सिद्धान्त हैं जो किसी न किसी दृष्टि से जैनदर्शन से समता रखते हैं। अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि जैनसम्मत सिद्धान्तों का अन्य दर्शनों में उल्लेख ही नहीं, समर्थन भी है। किसी न किसी रूप में पूर्वोक्त सिद्धान्तों की झलक जैनेतर दर्शनों में मिल ही जाती है। . 1 / पुराणों में जैन धर्म
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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