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________________ 16. अजीर्ण होने पर भोजन न करने वाला। 17. नियत समय पर संतोष के साथ भोजन करने वाला। 18. धर्म के साथ अर्थ, काम, मोक्ष पुरुषार्थ का इस प्रकार से सेवन करने वाला, जिससे कोई किसी का बाधक नहीं हो। 19. अतिथि, साधु और दीन असहाय जनों का यथायोग्य सत्कार करने वाला। 20. कभी दुराग्रह के वशीभूत न होने वाला। 21. गुणों का आदर करने वाला। 22. देश और काल के प्रतिकूल आचरण न करने वाला। 23. अपनी शक्ति-अशक्ति को समझकर कार्य करे। 24. सदाचारी तथा अपने से अधिक ज्ञानवान् पुरुषों की विनय व भक्ति करने वाला। 25. अपने पर आश्रितों का पालन-पोषण करने वाला। 26. दीर्घदर्शी। 27. अपने हित-अहित को समझने वाला। 28. लोकप्रिय। 29. कृतज्ञ। . 30. लज्जाशील। .. 31. दयावान / 32. सौम्य। . 33. : परोपकारी। . 34. काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य को जीतने वाला। 35. इन्द्रियों को अपने वश में रखने वाला / 22 गृहस्थं की इस सामान्य आचार संहिता के अतिरिक्त श्रावक के लिए इन बारह व्रतों का भी विधान है ___ स्थूलरूप से अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का पालन करना, दिशापरिमाण (क्षेत्र सम्बन्धी मर्यादा), भोगोपभोग मर्यादा, अनर्थदण्ड विरमण (अनर्थक क्रियाओं का त्याग),सामायिक,दया,पौषध,(ये तीनों अनुष्ठान हैं) एवं अतिथिसंविभाग।३ इनमें अहिंसादि पाँच व्रतों का पुराणों में भी यम के रूप में गृहस्थ के लिए विधान है। भोग-उपभोग की सामग्री एवं उनकी आसक्ति त्याग का, हिंसादि अनावश्यक क्रियाओं का निषेध भी पुराणों में दृष्टिगोचर होता है। पूर्ववर्णित बारह व्रतों से आगे भी श्रावक की ग्यारह प्रतिमाओं का विवरण उपलब्ध होता है / 25 इन प्रतिमाओं के धारक श्रावक की तुलना पुराणों में वर्णित वानप्रस्थी से हो सकती है। प्रतिमाधारी श्रावक सांसारिक कार्यों से निवृत्त होने पर . 187 / पुराणों में जैन धर्म
SR No.004426
Book TitlePuranome Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharanprabhashreeji
PublisherPrakrit Bharati Academy
Publication Year2000
Total Pages308
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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