________________ है, उससे किस प्रकार पौराणिक मान्यताएं भी मैल खाती हैं, अपरिग्रह, सत्य, तप, दान आदि सामान्य आचारों की मान्यताएँ किस प्रकार दोनों में समान हैं (यह सामान्य आचार वाले अध्याय में बतलाया गया है), श्रमणों में श्रावकों और संन्यासियों के जी विशिष्ट आचार वर्णित हैं, उसी प्रकार के आचार पुराणों में भी गृहस्थी, योमियौं, संन्यासियों आदि के लिए किस रूप में पाए जाते हैं, (यह विशेष आचार वाले अध्याय में बताया मया है), पुराणों का भुवनकोश और जैन भुवनकोश किस प्रकार समान है, ईश्वर की अवधारणा दोनों धाराओं में किस-किस रूप मैं रही है और किस प्रकार उनमें समान सूत्र खोजे जा सके हैं - यह सब विभिन्न अध्यायों मैं सप्रमाण और सुबोध शैली मैं विवेचत है। - पुरीवाद से