________________ este tugestuestestues * श्री भक्तामर स्तोत्र भावानुवाद हे नाथ! भक्ति युत् इन्द्र देव जब, चरणों में शीश नमाते हैं, उनके मुकुटों में लगे मणि-रत्न भी, दिव्य प्रकाश को पाते हैं। भर हृदय मणि में भक्ति प्रेम जब, अर्पणता शुचि भाव धरे, अज्ञान मोहाताम नाश खास हो, पाप ताप संताप हरे / / आदिपुरुष हो आदि जिनेश्वर, कर्मभूमि के आदि कर्ता, चरण-युग में प्रणाम श्रद्धा-युत्, मिथ्यामोह तिमिर हर्ता / आलम्बन एक मात्र आपका, भव-समुद्र से तिरने को, नौका भी हो मात्र आप ही, भवजल पार उतरने को।। 1 / / श्री सकल शास्त्र विज्ञाता होते, तत्वबोध भी पूर्ण जिन्हें , बुद्धि के भंडार चतुर भी, सुरलोक नाथ शकेन्द्र नमें तीनलोक का चित्त हरण हो, ऐसी स्तुतियाँ भाव धरि, महाआश्चर्य मुझ पामर ने भी, प्रथम जिनेश्वर स्तुति वरि / / 2 / / GesireGeeGQ>Racesite-estagedesisexgeegeergest ॐ देवताओं से पूजित सिंहासन, महिमा अपरंपार हैं, मैं बुद्धिहीन निर्लज्जमूढ़ हूँ, स्तुति गाता से ही निस्तार है। जल में स्थित चंद्रबिंब को, सिवा बालक के कौन ग्रहे, 5 छद्मस्थ दशा में तव-गुण-गायन, यह भी बाल प्रयास रहे / / 3 / / गुणनिधि प्रभु गुण आपके , चंद्रकांति समनिर्मल है , र सुरगुरू सम बुद्धि भले हो, गुणगान करना नहीं सरल है। प्रलयकाल की पवन में जब, मच्छ कच्छादि उद्धत हो, भुजबल से तब कौन तिरेगा, जब समुद्र ही क्षुभित हो।। 4 || ()