________________ कास t estuestosteron भगवान ऋषभदेव के विराट व्यक्तित्व का जिस श्रद्धा के ( साथ जैन धर्म के आगम-ग्रंथों में दिग्दर्शन कराया गया है, ठीक (, उसी प्रकार की अगाध प्रगाढ़ श्रद्धा के साथ भारत के प्रायः सभी प्राचीन धर्मो के पवित्र ग्रंथों में उनके लोक-व्यापी वर्चस्व का प्रतिपादन किया गया है। उन्होंने मानव-समाज को इस लोक के साथ-साथ 5) परलोक को भी सुखद और सुन्दर बनाने के जो मार्ग बताए, वे न (G केवल मानवमात्र, अपितु प्राणिमात्र के लिए वरदान सिद्ध हुए। (), उनके द्वारा आविर्भूत लोकनीति और राजनीति जिस प्रकार किसी ॐ वर्ग विशेष के लिए नहीं, अपितु समष्टि के हित के लिए भी, उसी र प्रकार उनके द्वारा स्थापित धर्म–मार्ग भी समष्टि के कल्याण के लिए था। यही कारण है कि भारत के प्राचीन धर्म ग्रंथों में भगवान 2) ऋषभदेव को धाता, भाग्य-विधाता और भगवान आदि संबोधनों से * अभिहित किया गया है। .. 8 ऋषभदेव के समय के बारे म में श्री रामधारी सिंह दिनकर का 6) कथन है-"इस दृष्टि से कई 1) जैन विद्वानों का यह मानना 2 अयुक्तियुक्त नहीं है कि ऋषभदेव 8 वेदोल्लिखित होने पर भी वेदपूर्व है। आजकल, मार्च 1962, पृष्ठ 18 / डॉ. जिम्भर लिखते है"पहले तीर्थंकर ऋषभ हुए, जिन्होंने मानव को सभ्यता का पाठ पढ़ाया।" - "अतः जैन धर्म और भगवान ऋषभ के काल से चला आ रहा है।'' भगवान ऋषभदेव / genoeg gestaciones