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________________ beste estivestestuestes दी और फिर स्वयं उन्होंने अवधूतवृति स्वीकार कर ली। श्रीमद्भागवत् में उनके उपदेशों का सार इस प्रकार है-"मेरे इस अवतार-शरीर का रहस्य साधारण जनों के लिये बुद्धिगम्य नहीं है। शुद्ध सत्व ही मेरा हृदय है। और उसी में धर्म की स्थिति है। मैंने अधर्म को अपने से बहुत दूर पीछे ढकेल दिया है, इसलिये सत्पुरुष 5) मुझे ऋषभ कहते हैं। पुत्रों। तुम सम्पूर्ण चराचर भूतों को मेरा ही शरीर समझकर शुद्ध बुद्धि से पद पद पर उनकी सेवा करो, यही मेरी सच्ची पूजा है।" श्रीमद्भागवत में ऐसा भी उल्लेख है ऋषभदेव ने पृथ्वी का पालन करने के लिए भरत को राजगद्दी पर बिठाया / स्वयं धर्म है। की शिक्षा देने के लिए विरक्त हो गए। केवल शरीर मात्र का परिग्रह रखा और सब कुछ घर पर रहते ही छोड़ दिया। वे तपस्या के कारण सुखकर काँटा हो गए थे और उनके शरीर की शिरायेंधमनियाँ दिखाई देने लगी थी। शिवपुराण में शिव का तीर्थंकर ऋषभदेव के रूप में अवतार लेने का उल्लेख है। . बौद्ध साहित्य में लिखा है कि भारत के आदि सम्राटों में नाभिपुत्र ऋषभ और ऋषभपुत्र भरत की गणना की गई है। वे व्रतपालन में दृढ़ थे। उन्होंने हिमवंत गिरि हिमालय पर सिद्धि प्राप्त की। धम्मपद में ऋषभ को सर्वश्रेष्ठ वीर कहा है। ऋषभदेव को आदिनाथ के अलावा और भी कई नामों से जाना जाता है जैसे / हिरण्यगर्भ, प्रजापति, लोकेश, चतुरानन, नाभिज, स्रष्टा, स्वयंभू (G आदि। ये सभी नाम पुराणों में प्रसिद्ध देव ब्रह्मा के पर्याय है। इसलिए कहीं-कहीं इस बात का उल्लेख भी मिलता है कि ब्रह्मा और भगवान ऋषभदेव अलग नहीं, बल्कि एक ही है। guicergencGeetergesteemegesepsitenseskgesic
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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