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________________ beestesgesogestriges 60 भरत को केवल ज्ञान- भरत चक्रवर्ती बन गए। लेकिन उन्हें आत्मशान्ति की प्राप्ति न हुई। राज्य के लिए उन्हें अपने भाइयों को खोना पड़ा, इसके लिए उन्हें वे सदैव उदास मन बने रहे / वे राज्य ॐ तो करते रहे परन्तु उनका मन कभी उसमें रमा नहीं। र एक दिन शीशमहल में श्रृंगार करते हुए देह और संसार की अनित्य स्थिति पर विचार करते हुए उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया। (8 शीशमहल में कैवल्य की साधना यह अपने आप में एक अकेली घटना है। केवलज्ञान का सम्बन्ध मन के परिवर्तन पर आधृत है, * दैहिक परिवर्तनों पर नहीं। र निर्वाण- भगवान् ऋषभदेव सुदीर्घ काल तक इस वसुन्धरा पर धर्म की पतितपावनी गंगा बहाते हुए विचरण करते रहे / लाखों२) करोड़ों मनुष्यों ने इस गंगा में गोता लगाकर परमपद प्राप्त किया। ___आयुष्य-क्षय को निकट देखकर प्रभु ऋषभदेव दस हजार श्रमणों के साथ अष्टापद पर्वत पर पधारे। 6 दिन के अनशन र सहित प्रभु ने समस्त कर्मों को क्षय करके मोक्ष पद प्राप्त किया / 6 वे नर से नारायण, आत्मा से परमात्मा और अरिहंत से सिद्ध हो , Gestaegeesegessegessesgesgesegusagescorest 1) गए। पुनः 64 इन्द्रों, असंख्य देवताओं और महाराज भरत सहित ॐ अगणित मानवों ने मिलकर प्रभु का निर्वाण महोत्सव मनाया / आदि र तीर्थंकर, आदि जिनेश और आदि महामानव प्रभु ऋषभ को वन्दन! अभिवन्दन!
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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