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________________ जाएगी। मुझे केवलज्ञान साधकर ही प्रभु के पास जाना चाहिए जिससे वन्दनादि का झंझट ही मिट जाए।" ऐसा विचार करके May बाहुबली वहीं पर अडोल समाधि में खड़े हो गए। अहम् की सूक्ष्मरेखा उनके हृदय में शेष थी। केवलज्ञान और बाहुबली की आत्मा के मध्य वह सूक्ष्म-सी रेखा महादीवार बन गई। बाहुबली निरन्तर एक वर्ष तक अविचल समाधि में खड़े रहे। पक्षियों ने उनकी देह में घोंसले बना लिए थे। जंगली जानवर Fi उनकी देह को ढूंठ समझकर अपनी देह खुजलाते थे। न अन्न, न ॐ जल! अटूट समाधि! फिर भी कैवल्य की ज्योत न जली। बाहुबली की दशा को प्रभु ऋषभदेव अपने कैवल्य के आलोक ) में निहार रहे थे। उन्होंने अपनी पुत्रियों-साध्वी ब्राह्मी और साध्वी 1) सुन्दरी को बाहुबली को प्रतिबोध देने भेजा। दोनों साध्वियां बाहुबली a के पास पहुंची और बोलीं-भाई! अहम् के हस्ती से नीचे उतरो / ऐसा किए बिना तुम्हें केवलज्ञान नहीं होगा।" बहनों की बात सुनकर बाहुबली की विचारधारा मुड़ गई। 6) उन्होंने चिन्तन किया-'सभी को परास्त करके भी मैं मेरे सूक्ष्म ( 9 अहम् से परास्त हो गया हूँ। मेरे छोटे भाई भले ही आयु में मुझसे छोटे हैं परन्तु वास्तविक आयु तो संयम की आयु होती है, और इस दृष्टि से वे मुझसे ज्येष्ठ हैं। ज्येष्ठ को प्रणाम का अधिकार है। मैं और उन्हें प्रणाम करूँगा।' ऐसा चिन्तन करते ही बाहुबली का अहम् गल गया। उन्होंने प्रस्थान हेतु कदम उठाया और उसी पल उन्हें केवलज्ञान हो गया। देवदुंदुभियां बजने लगीं। बाहुबली ने अपनी मंजिल को पा लिया भी था। Lestagestuestestuesstoestestestuesit
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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