________________ प्रभु ऋषभदेव-परिचय अनुशीलन | भगवान श्री ऋषभदेव इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर थे। उन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है। प्रभु ऋषभदेव वर्तमान विश्व a के आदि सभ्य-संस्कृति पुरुष, आदि राजा, आदि शिक्षक, आदि मुनि और आदि सर्वज्ञ थे। उन्होंने पाषाण काल में अभावग्रस्त मानव-समाज को नई व्यवस्थाएं देकर उसके अभावों को मिटाया। उन्होंने मनुष्यों को क्षुद्र मानसिकताओं और स्वार्थों से ऊपर उठाकर " उन्हें सहज जीवन और परस्परोपग्रहो जीवनाम्’ का पाठ पढ़ाया। M उन्होंने तत्कालीन मनुष्यों की न केवल भूख का निदान किया था, ॐ अपितु उन्हें अध्यात्म के सूत्र देकर मोक्ष का मार्ग भी दिखाया। प्रभु ऋषभदेव सभ्य विश्व के जनक थे। उनसे पूर्व का मानव घोर असंस्कारित, अज्ञानी और अकर्मण्य था। उसका अज्ञान 1) और अकर्मण्यता ही उसकी सबसे बड़ी दुर्बलता और शत्रु बन गई थी। अनायास उपलब्ध भोजन- सामग्री कम थी और उसे खाने & वाले अधिक थे। जहाँ भूख से भोजन कम हो; वहां द्वन्द का जन्म र होना स्वाभाविक बात है। उस समय के मनुष्य परस्पर लड़ने झगड़ने लगे थे। जहां कहीं वृक्षों पर लटके फल देखते, वहीं अनेक मनुष्य एक साथ सब झपटते / परस्पर विवाद होता / इसी विवाद ने 2 उस आदिम मनुष्य का सहज-सरल सुखमय जीवन विषाक्त बना र दिया था। ऐसे समय में, मानव समाज द्वारा एक ऐसे मसीहा की 5) आवश्यकता अनुभव की जा रही थी जो स्वार्थ से ऊपर उठकर 1) मनुष्य के ज्ञान नेत्र खोल, उसे अकर्मण्यता के भंवर-जाल से gesteuerteventueetagestoeste