________________ muestestuesisestuestes आगे बढ़ते हुए प्रभो को कोई पाँवों के पकड़कर कहता, हे 1) महान् उपकारी! स्नान के लिये गरम जल तैयार है। पहनने के लिये र सुन्दर वस्त्राभूषण हाजिर हैं। दयालु! कृपा करके हमारा जन्म सार्थक कर दो। र कोई प्रभु का मार्ग रोककर दृढ़तापूर्वक कहता –"हे स्वामी! S) आज यह अनुपम अवसर आया है, हमें निराश नहीं कीजिए।'' हे व श्री दीनानाथ! घर पर पधारकर अप्सरा के सदृश विश्वमोहिनी सुन्दरी कन्या को स्वीकार करके मेरी वर्षों की अभिलाषा पूर्ण कीजिये।" र वैराग्यमूर्ति श्रीऋषभदेव उनके आग्रहों पर ध्यान नहीं देते र हुए मौन भाव से राजमार्ग पर आगे बढ़ते जा रहे हैं। प्रभु की ऐसी a) उदासीनता व अखंड मौन से लोगों की व्यथा व व्याकुलता बढ़ती ॐ जा रही है। वे परस्पर कहने लगे- "अरे! हमारे स्वामी को क्या चाहिए 5)? कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है। जिन करुणानिधि के नाम से 1) नवनिधि प्रकट होती है, जिनका हमारे ऊपर अनंत-अनंत उपकार ( पर है, वे आज इतने शून्यचित्त एवं अनजान क्यों आगे बढ़े चले जा रहे है हैं ? लोगों का कोलाहल बढ़ता जा रहा है। कोई इस रहस्य को 5 जान नहीं पा रहा था कि इतने दिनों से प्रभु कहाँ थे ? और आज Ma हमारी नगरी में इस तरह क्यों घूम रहे हैं ?" ॐ स्वामी ठहरो! स्वामी ठहरो! इस प्रकार भक्तिपूर्वक पुकारते / र हुए लोग प्रभु के पीछे भागे जा रहे थे। इस कोलाहल के साथ स्त्रियों 6) व बच्चों के रुदन की आवाज राजसभा में विराजमान विगत रात्रि 1) में देखे हुए स्वप्नों पर विचार-विमर्श करते हुए श्रेयांसकुमार के साथ समस्त सभासदों ने सुनी, तो उन सभी का कौतुहल भी जाग्रत हो गया। एक स्वामिभक्त सेवक ने बताया-"महाराज! हमारे Leste Testestuestestuestesgestoest