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________________ అల అలోఅల అల అలోఅల అలోలో అఆ mergestigesisemeges र चट्टान की भाँति दृढ़ और पर्वत की तरह अडोल, अकंप र प्रभु को देखकर अन्य चार हजार मुनि शनैः शनैः शिथिलाचारी a) बनते गये। उन्होंने परस्पर विचार किया कि समुद्र का उल्लंघन 6 करने वाले गरूड़राज की भाँति महासत्वशाली प्रभु ऋषभदेव का साथ हमारे जैसे क्षुद्र प्राणी कैसे निभा सकते हैं। अतः हमें कोई २सरल मार्ग खोजना चाहिए। सभी ने सोचा 'प्रभु निराहारी, निष्परिग्रही ( हैं, किन्तु हमारे लिये आजीवन उतनी कठोर प्रतिज्ञा का निर्वाह कर पाना अशक्य ही नहीं असंभव है। अतः हम कंद, मूल, फल, * फूल आदि खाकर जीवन धारण करेंगे। ऐसा विचार करके उन / सभी ने स्वेच्छा से अपना-अपना मार्ग चुन लिया। कोई कंदाहारी र बना, कोई मूलाहारी तो कोई फूल-फलाहारी। कोई एक दंडी कहलाया तो कोई त्रिण्डी। किसी ने जटा रखनी आरम्भ कर दी 10 तो किसी ने रूद्रा / इस प्रकार नाना तापस और नाना वेश बन गये। चार हजार मुनियों के विपथगामी हो जाने की प्रभु को चिंता नहीं थी। अमरता के राही प्रभु पूर्ववत् ही भूख प्यास को समभाव से सहन करते हुए पृथ्वी पर विचरने लगे। भयंकर धियों से निष्कंप पर्वतचलित हो सकते हैं, किन्तु भगवान अपने निश्चय से स्वप्न में भी कभी विचलित नहीं हुए। Het gestion de tous les gestes osales "ज र
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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