________________ G पGिoddessescegessesterest प्रभु ऋषभदेव 42 दोषों से रहित विशुद्ध आहार की गवेषणा हेतु नगर-नगर, ग्राम-ग्राम, ऊँच, नीच, मध्यम कुलों में घूमते थे। साधु समाचारी से अनभिज्ञ सरल स्वभावी लोगों को आहार पानी 1) देने का तो विचार ही उत्पन्न नहीं होता, वे तो अपने महाराजाधिराज / हृदय सम्राट को नग्न अवस्था में देखकर बहुमूल्य वस्त्राभूषण, भी उत्तम जाति के हाथी, घोड़े, रथ तथा मणिमाणिक्यादि की भेटें / म उनके चरणों में समर्पित करना चाहते थे। इतना ही नहीं वरन् / अप्सरा के सदृश सुन्दर व सर्वगुण संपन्न कन्या रत्न समर्पित है करके अपने पास रखने का आग्रह करते। किन्तु सभी भौतिक भावों से निसंग व निस्पृह प्रभु उनके अनुग्रहों को इकरार या इंकार किये बिना ही अधोनयन किये हुएं मौन रहकर आगे बढ़ जाते / बहुमूल्य भेंट सामग्रियों के प्रति उपेक्षित प्रभु को आगे बढ़ते र देख भोले लोग समझ नहीं पाते / लोगों की अन्तर्व्यथा दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। किन्तु प्रभु की उदासी का व बिना कुछ ग्रहण किये प्रतिदिन जंगल की ओर लौट जाने का कारण किसी की समझ में नहीं आ रहा था। लोग परस्पर वार्तालाप करते हुए कहते 'बहुमूल्य भेंट सामग्रियों की तरफ भगवन् आँख उठाकर देखते र तक नहीं यह हमारा कैसा दुर्भाग्य है। 1) भूख व प्यास के परिषह को अग्लान भावों से सहन करते raj हुए प्रभु ग्रामानुग्राम विचरण करते , किन्तु किसी भी स्थान पर श्री उन्हें निर्दोष आहार पानी उपलब्ध नहीं हो पाता था / . Represesex GLAGeegeesegusagessegeskgeetGet தலைமை