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________________ kagesdeegesdeegesgesdeeges (द्वितीय अध्याय) Gescenesse महाराज ऋषभदेव विचारों में मग्न थे। तभी पंचम स्वर्ग के ब्रह्मलोक के अन्त में रहने वाले अरूण, आदित्य, सारस्वत आदि all नव लोकांतिक देव नन्दन वन के अप्रतिम सौन्दर्य को निहारते हुए ॐ वहाँ आते हैं। जहाँ श्रीऋषभदेव चिन्तन सागर में डूबे हुए थे, तीन और ज्ञान के धारक प्रभु ने मुस्कान बिखेरते हुए उनका सुस्वागत S) किया। मृदंग जैसी मधुर ध्वनि एक साथ उनके मुख से स्वतः निसृत हुई : 'बुज्झह' 'बुज्झह' अर्थात् हे प्रभो! बुद्ध बनो, बुद्ध बनो। ॐ 'मा मुज्झह' 'मा मुज्झह'.अर्थात् संसार में मुग्ध न रहो, 'उहाही' 'उहाही' अर्थात् उठिये, उठिये / और 'पट्ठाही' 'पट्ठाही' अर्थात् प्रस्थान कीजिए, प्रस्थान कीजिए। इस प्रकार देवों ने अपने जीताचार के अनुसार सविनय मुस्कुराते हुए प्रार्थना की। "हे त्रिलोकीनाथ! अब धर्म तीर्थ का प्रवर्तन करके संसार का कल्याण कीजिये।' . श्री ऋषभदेव ने 'तथास्तु' कहकर मुस्कुराते हुए उनको सानुरोध स्वीकार किया। रात्रि की नीरवता में वनिता नगरी के हृदय सम्राट पुनः आत्मानन्द में गोते लगाने लगे। उषा के आगमन के साथ ही अनासक्त योगी श्री ऋषभदेव ने अपनी बलवती भावना, जो अब दृढ़ निश्चय का रूप ले चुकी थी, वह अपनी माता व सभी पुत्रों के ) समक्ष प्रकट की। वायु के संचार के साथ ही अल्प समय में यह समाचार सारी नगरी में फैल गया। भरतादिक कुमारों, स्वामी भक्त सचिवों, सेवकों तथा र s GLGeetagence
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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