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________________ beses sestiegesen ‘करके भावविशुद्धि करना। उपर्युक्त नियमों के साथ यथाशक्ति वर्षीतप की आराधना , Pal करने से चित्त प्रसन्नता व मोक्ष रूप श्रेष्ठफल की प्राप्ति होती है। ____ नोट- यदि उपवास से वर्षीतप नहीं होता हो तो आयंबिल या एकासना से भी वर्षीतप की आराधना की जा सकती है। उपवास से करना उत्कृष्ट वर्षीतप है। आयंबिल से करना मध्यम वर्षीतप है। एकासने से करना जघन्य वर्षीतप है। इति शुभम् भवतु। प्रभु ऋषभदेव को निम्न पाठ / पर बोलकर 20 वदना बोलकर 20 वंदना करें ' . ओम् श्री ऋषभदेवनायाय नमः अहो प्रभु, इस काल में इस जगतितल पर आप ही परम पुरुषावतार 5 रूप में सम्यक्दृष्टि सम्यकज्ञानी रूप में अवतरित हुये। आपने ही (C १२सर्वप्रथम बाह्य एवं आभ्यांतर ग्रंथि का छेदन किया। मुनिव्रत धारण ( और करके रत्नत्रय की आराधना में लीन होकर निर्ग्रन्थ अप्रमत और वीतरागी मुनि भगवंत हुए। आपने ही सर्वप्रथम घाती कर्मों का क्षयफर राग-द्वेषादि भावों का नाशकर अनंत चतुष्ट्य स्वरूप में विराजमान हुए अष्टप्रातिहार्य और 3 4 अतिशयों से युक्त होकर 6 भव्य जीवों के कल्याण के लिए धर्म तीर्थ की स्थापना करके मोक्षमार्ग का उपदेश दिया। आदि जिन, जगदगुरू जगतकल्याणकर आपके चरण-शरण में मेरी अनन्य प्रीति अनन्य निष्ठा, अनन्य श) बहुमान, अनन्य शरण प्राप्त हो और कोई मन में कामना नहीं रहे। SAGAGReceLSARGESTROGRLSEXGALSAGARGARGISTRI
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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