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________________ प्रज्ञाविभूति महासती श्री प्रियदर्शना श्री जी म.सा. बाह्य व्यक्तित्व-तेजस्वी मुख-मण्डल, श्वेत परिधान, भव्य एवं आकर्षक व्यक्तित्व की धनी हैं-महासती प्रियदर्शना जी म.सा. आन्तरिक व्यक्तित्व-संयममय जीवन, सरलता, विनम्रता, गुरू भक्ति एवं तीव्र मेधा से सम्पन्न. आप 17 वर्ष की लघुवय में अक्षय तृतीया' के दिन सन् 1979 में आचार्य सम्राट श्री आनन्द ऋषि जी म.सा. से दीक्षा ग्रहण करके पू. गुरूणी जी श्री कौशल्या देवी म.सा. एवं पू. श्री विजय श्री जी म.सा. के चरण-सन्निधि सर्वात्मना समर्पित होकर रत्नत्रय की आराधना में तल्लीन हो गईं. अध्ययन के क्षेत्र में-श्वेताम्बर तथा दिगम्बर शास्त्रों का गहन अध्ययन करके आपने जैन सिद्धान्ताचार्य, साहित्य रत्न तथा जैन दर्शन में एम.ए. तक की परीक्षाएँ सर्वोच्च श्रेणी में उत्तीर्ण की हैं. लेखन के क्षेत्र में-भजन, मुक्तक, कविताएं और गद्य रचनाएं करके आपने भारतीय साहित्य के भण्डार में अभिवृद्धि की है. विहार क्षेत्र-राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात, हरियाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, झारखंड, छत्तीसगढ़ आदि.. विशेषता-सहज जीवन, समन्वयात्मक दृष्टिकोण, गुणग्राही वृत्ति, विनम्रता, कोमलता और श्रद्धा भक्ति. प्रस्तुत कृति में वर्षीतप के आराधकों के लिए जप-तप विधि एवं भजनों का सुन्दर संकलन हुआ है. ऋषभ -चरित्र एवं तप विधि को पढ़कर वर्षीतप करावें। साध्वी विचक्षणा श्री 'प्रज्ञा' साध्वी सुकृति श्री जी साध्वी सुप्रज्ञप्ति श्री जी
SR No.004425
Book TitleRushabh Charitra Varshitap Vidhi Mahatmya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanashreeji
PublisherMahavir Prakashan
Publication Year2000
Total Pages116
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size13 MB
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