________________ / परिभाषा है। जैन परम्परा के उत्तराध्ययनसूत्र, बौद्ध-परम्परा के धम्मपद और महाभारत के शांतिपर्व में सच्चे ब्राह्मण के स्वरूप का जो विवरण मिलता है, वह न केवल वैचारिक साम्यता रखता है, वरन् उसमें शाब्दिक साम्यता भी अधिक है, जो तुलनात्मक अध्ययन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। ___ सच्चा ब्राह्मण कौन है? इस विषय में 'कुमारपाल प्रबोध प्रबंध' में मनुस्मृति एवं महाभारत से कुछ श्लोक उद्धृत करके यह बताया गया है कि- 'शीलसम्पन्न शूद्र भी ब्राह्मणत्व को प्राप्त हो जाता है और सदाचार रहित ब्राह्मण भी शूद्र के समान हो जाता है, अतः सभी जातियों में चाण्डाल और सभी जातियों में ब्राह्मण होते हैं। हे अर्जुन ! जो ब्राह्मण कृषि, वाणिज्य, गोरक्षा एवं राज्य की सेवा करते हैं, वे वस्तुतः ब्राह्मण नहीं हैं। जो भी द्विज हिंसक, असत्यवादी, चौर्यकर्म में लिप्त, दुरादाचार सेवी हैं, वे सभी पतित (शूद्र) हैं। इसके विपरीत, ब्रह्मचर्य और तप से युक्त लौह व स्वर्ण में समान भाव रखने वाले, प्राणियों के प्रति दयावान् सभी जाति के व्यक्ति ब्राह्मण ही हैं। सच्चे ब्राह्मण के लक्षण बताते हुए कहा गया है- 'जो व्यक्ति क्षमाशील आदि गुणों से युक्त हो, जिसने सभी दण्डों (परपीडन) का परित्याग कर दिया है, जो निरामिषभोजी है और किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करता -- यह किसी व्यक्ति के ब्राह्मण होने का प्रथम लक्षण है। इसी प्रकार जो कभी असत्य नहीं बोलता, मिथ्या वचनों से दूर रहता है-- यह ब्राह्मण कां द्वितीय लक्षण है। पुनः, जिसने परद्रव्य का त्याग कर दिया है तथा जो अदत्त को ग्रहण नहीं करता, यह उसके ब्राह्मण होने का तृतीय लक्षण है। जो देव, असुर, मनुष्य तथा पशुओं के प्रति मैथुन का सेवन नहीं करता- वह उसके ब्राह्मण होने का चतुर्थ लक्षण है। जिसने कुटुम्ब का वास अर्थात् गृहस्थाश्रम का त्याग कर दिया हो, जो परिग्रह और आसक्ति से रहित है, यह ब्राह्मण होने का पंचम लक्षण है। जो इन पांच लक्षणों से युक्त है, वही ब्राह्मण है, द्विज है और महान् है, शेष तो शूद्रवत् हैं। केवट की पुत्री के गर्भ से उत्पन्न व्यास नामक महामुनि हुए हैं। इसी प्रकार हरिणी के गर्भ से उत्पन्न श्रृंग ऋषि शुनकी के गर्भ से शुक, माण्डूकी के गर्भ से मांडव्य तथा उर्वशी के गर्भ से उत्पन्न वशिष्ठ महामुनि हुए। न तो इन सभी ऋषियों की माता ब्राह्मणी हैं, न ये संस्कार से ब्राह्मण हुए थे, अपितु ये सभी तप साधना या सदाचार से ब्राह्मण हुए हैं, इसलिए ब्राह्मण होने में जाति विशेष में जन्म कारण नहीं है, अपितु तप या सदाचार ही कारण है। (63)