________________ 18. महादेवस्तोत्र, 44. 19. योगदृष्टिसम्मुच्चय, हरिभद्र, प्रका. विजय कमल केशर ग्रंथमाला, खम्भात्, वि.सं. 1992, 130. . उत्तराध्ययनसूत्र, संपा. साध्वी चंदना, प्रका. वीरायतन प्रकाशन, आगरा, 1972, 23/25. तत्वसंग्रह, संपा. द्वारिका प्रसाद शास्त्री, प्रका. बौद्ध भारती, वाराणसी, 1968, 3588 / अनन्तधर्मात्मकमेव तत्वम्, 22-अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, हेमचंद्र, प्रका. जैन ग्रंथ प्रकाशन सभा, भावनगर, वि.सं. 1996 23. नत्थि नयहिंविहूणं सुत्तं अत्थो य जिणवये किंचि -आवश्यकनियुक्ति, 5441 24. सन्मतितर्क, संपा. सुखलाल संघवी, प्रका. पूंजीभाई ग्रंथमाला कार्यालय, अहमदाबाद, 1932, 1.28 / 25. सव्वे समयंति सम्मं चेगवसाओ नया विरुद्धा वि। मिच्च ववहारिणो इव, राआदासीण वसवत्ती॥ - विशेषा. भाष्य, श्री जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण टीका हेमचंद्र, प्रका. हर्षचंद्र भूराभाई, बनारस, सं. 2441, 2267 / अध्यात्मोपनिषद्, यशोविजय, न्यायाचार यशोविजयकृत ग्रंथमाला, प्रका. श्री जैनधर्म प्रकारक सभा, भावनगर, वि.सं. 1965, 61,, 70, 71, 73 / 27. . अरहता इसिणा बुइयं-इसिभासियाई, संपा. महोपाध्याय विनयसागर, प्रका. प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर, 1988, 1 28. एवमेगे उ पासत्था ते भुज्जो विप्पगब्भिया। एवं उवट्ठिता संता ण ते दुक्खविमोक्खया॥ . . - सूत्रकृतांगसूत्र, संपा. मधुकर मुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1982, 1/2/31-32 29. आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 2/1/5/29 / 30. हे खंदया ! सागयं, खंदया ! सुसागयं - भगवतीसूत्र, संपा. घासीलाल जी, प्रका. अ.भा.श्चे, स्था. जैन शास्त्रोद्धार समिति, (199) 26. गम प्रकाशन