________________ जिसने रागद्वेष कामादिक जीते, सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का, निस्पृह हो उपदेश दिया। बुद्ध वीर जिन हरि हर ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्तिभाव से प्रेरित हो, यह चित्त उसी में लीन रहो। वस्तुतः यदि हम विश्व में शांति की स्थापना चाहते हैं, यदि हम चाहते हैं कि मनुष्य-मनुष्य के बीच घृणा और विद्वेष की भावनाएं समाप्त हों और सभी एक-दूसरे के विकास में सहयोगी बनें, तो हमें आचार्य अमितगति के निम्न चार सूत्रों को अपने जीवन में अपनाना होगा। वे कहते हैं - सत्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् / माध्यस्थ भावं विपरीतवृत्तौ, सदा ममात्मा विदधातु देव // हे प्रभु ! प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव, गुणीजनों के प्रति समादरभाव, दुःख एवं पीड़ित जनों के प्रति कृपाभाव तथा विरोधियों के प्रति माध्यस्थभाव-समताभाव मेरी आत्मा में सदैव रहे। . संदर्भ 1. आयाणे अज्जो समाइए, आयाणे अज्जो समाइयस्स अट्टेव्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1992, 1/9. 2.. समियाए धम्मे आरिएहिं पवेइए - आचारांगसूत्र, संपा. मधुकरमुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1980, 1/8/3. धर्म जीवन जीने की कला - पृ. 7-8. 4. योगदृष्टिसमुच्चय, हरिभद्र, विजय कमल केशरं ग्रंथमाला, खम्भात्, वि.सं. 1992, 137. 5. . ' आचारांगसूत्र, संपा. मधुकर मुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1980, 1/4/2. 6. योगदृष्टिसमुच्चय, हरिभद्र, विजय कमल केशर ग्रंथमाला, सम्वत्, वि.सं. 1992, 133. णाणाजीवा णाणा कम्मं णाणाविहं हवे लद्धी। तम्हा वयणविवादं सगपरसमएहिं वज्जिजो।। - नियमसार, अनु. (197)