________________ रहा है, तो साम्यवादी रूस और पूंजीवादी संयुक्त राज्य अमेरिका एक-दूसरे को नेस्तनाबूद करने पर तुले हुए हैं। आज मानवता उस कगार पर आकर खड़ी हो गई है, जहां से उसने यदि अपना रास्ता नहीं बदला तो उसका सर्वनाश निकट है। ‘इकबाल' स्पष्ट शब्दों में हमें चेतावनी देते हुए कहते हैं - अगर अब भी न समझोगे तो मिट जाओगे दुनियां से। तुम्हारी दास्तां तक भी न होगी दास्तानों में // विज्ञान और तकनीक की प्रगति के नाम पर हमने मानव जाति के लिए विनाश की चिता तैयार कर ली है। यदि मनुष्य की इस उन्मादी प्रवृत्ति पर कोई अंकुश नहीं लगा, तो कोई भी छोटी सी घटना इस चिता को चिनगारी दे देगी और तब हम सब अपने हाथों तैयार की गई इस चिता में जलने को मजबूर हो जाएंगे। असहिष्णुता और वर्ग-विद्वेष- फिर चाहे वह धर्म के नाम पर हो, राजनीति के नाम पर हो, राष्ट्रीयता के नाम पर हो या साम्प्रदायिकता के नाम पर - हमें विनाश के गर्त की ओर ही लिए जा रहे हैं। आज की इस स्थिति के सम्बंध में उर्दू के शायर ‘चकबस्त' ने ठीक ही कहा है - मिटेगा दीन भी और आबरू भी जाएगी। ___ तुम्हारे नाम से दुनिया को शर्म आएगी॥ ... अतः आज एक ऐसे दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो मानवता को दुराग्रह और मतान्धता से ऊपर उठाकर सत्य को समझने के लिए एक समग्र दृष्टि दे सके, ताकि वर्गीय हितों से ऊपर उठकर समग्र मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी जा सके। धार्मिक मतान्धता क्यों ? धर्म को अंग्रेजी में रिलीजन' (Religion) कहा जाता है। रिलीजन शब्द रिलीजेर से बना है। इसका शाब्दिक अर्थ होता है - फिर से जोड़ देना। धर्म मनुष्य को मनुष्य से और आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की कला है। धर्म का अवतरण मनुष्य को शाश्वत शांति और सुख देने के लिए हुआ है, किंतु हमारी मतांधता और उन्मादी वृत्ति * के कारण धर्म के नाम पर मनुष्य-मनुष्य के बीच भेद की दीवारें खड़ी हो गई और उसे एक-दूसरे का प्रतिस्पर्धी बना दिया गया। मानव जाति के इतिहास में जितने युद्ध और संघर्ष हुए हैं, उनमें धार्मिक मतान्धता एक बहुत बड़ा कारण रही है। धर्म के नाम पर मनुष्य ने अनेक बार खून की होली खेली है और आज भी खेल रहे हैं। विश्व इतिहास का अध्येता इस बात को भलीभांति जानता है कि धार्मिक असहिष्णुता ने विश्व में जघन्य दुष्कृत्य कराए हैं। आश्चर्य तो यह है कि दमन, अत्याचार, नृशंसता और (173)