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________________ मन में अभय का विकास नहीं कर पाई है, आज भी वह उतना ही आशंकित, आतंकित और आक्रामक है, जितना आदिम युग में रहा होगा। मात्र इतना ही नहीं, आज विध्वंसकारी शस्त्रों के निर्माण के साथ उसकी यह आक्रामक वृत्ति अधिक विनाशकारी बन गई है और वह शस्त्र-निर्माण की इस दौड़ में सम्पूर्ण मानव जाति की अन्त्येष्टि की सामग्री तैयार कर रहा है। आर्थिक सम्पन्नता की इस अवस्था में भी मनुष्य उतना ही अधिक अर्थलोलुप है, जितना कि वह पहले कभी रहा होगा। आज मनुष्य की इस अर्थलोलुपता ने मानव जाति को शोषक और शोषित ऐसे दो वर्गों में बांट दिया है, जो एक दूसरे को पूरी तरह निगल जाने की तैयारी कर रहे हैं। एक भोगाकांक्षा और तृष्णा की दौड़ में पागल है तो दूसरा पेट की ज्वाला को शांत करने के लिए व्यग्र और विक्षुब्धा आज विश्व में वैज्ञानिक तकनीक और आर्थिक समृद्धि की दृष्टि से सबसे अधिक विकसित राष्ट्र यू.एस.ए, मानसिक तनावों एवं आपराधिक पवृत्तियों के कारण सबसे अधिक परेशान है, इससे सम्बंधित आंकड़े चौंकाने वाले हैं। किसी उर्दू शायर ने ठीक ही कहा है - तालीम का शोर इतना, तहजीब का गुल इतना। बरकत जो नहीं होती, नीयत की खराबी है // आज मनुष्य का सबसे बड़ा दुर्भाग्य तो यह है कि इस तथाकथित सभ्यता के विकास के साथ उसकी आदिम युग की एक सहज, सरल एवं स्वाभाविक जीवनशैली भी उससे छिन गई है, आज जीवन के हर क्षेत्र में कृत्रिमता और छयों का बाहुल्य है। मनुष्य आज न तो अपनी मूलवृत्तियों एवं वासनाओं का शोधन या उदात्तीकरण कर पाया है और न इस तथाकथित सभ्यता के आवरण को बनाए रखने के लिए उन्हें सहज रूप में प्रकट ही कर पा रहा है। उसके भीतर उसका पशुत्व' कुलांचें भर रहा है, किंतु बाहर वह अपने को 'सभ्य' दिखाना चाहता है। अंदर वासना की उद्दाम ज्वालाएं और बाहर सच्चरित्रंता और सदाशयता का छद्म जीवन, यही आज के मानस की त्रासदी है, पीड़ा है। आसक्ति, भोगलिप्सा, भय, क्रोध, स्वार्थ और कपट की दमित मूलप्रवृत्तियां और उनसे जन्य दोषों के कारण मानवता आज भी अभिशिप्त है, आज वह दोहरे संघर्ष से गुजर रही है - एक आंतरिक और दूसरा बाह्या आंतरिक संघर्षों के कारण आज उसका मानस तनावयुक्त है, विक्षुब्ध है, तो बाह्य संघर्षों के कारण मानव-जीवन अशांत और अस्त-व्यस्ता आज मनुष्य का जीवन मानसिक तनावों, सांवेगिक असंतुलनों और मूल्य संघर्षों से युक्त है। आज का मनुष्य परमाणु तकनीक की बारीकियों को (140)
SR No.004424
Book TitleBharatiya Sanskruti ke Multattva Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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