________________ पं. परमेष्ठीदास न्यायतीर्थ, प्रका. सत्साहित्य प्रकाशन एवं प्रचार विभाग, श्री कुन्दकुन्द महान जैन दिगम्बर तीर्थ सुरक्षा ट्रस्ट, जयपुर, 1988, 156 / एवाई मिच्छद्दिहिस्स मिच्छत्तपरिग्गहियाई मिच्छसुयं एयाणि चेव सम्मदिट्ठिस्स सम्मत्तपरिरहियाई सम्मसुयं अहवा मिच्छदिट्ठिस्स वि सम्मसुयं कम्हा? सम्मत्तहेउत्तणओ, जम्हा ते मिच्छदिट्ठिया तेहिं चेव समएहिं चोइया समाणा केइ सपक्खदिट्ठीओ वयेति से तं ... मिच्छसुयं / नंदीसूत्र, प्रका. धर्मदास जैन मित्र मंडल, रतलाम, सं. 2005, 72 / / 9 अ. भगवती-अभयदेवकृत वृत्ति, प्रका. केशरीमल जैन, श्वेताम्बर संस्था , सूरत, 1937, 14/7 पृ. 1988 / (ब) मुक्खमग्ग पवनानं सिनेहो वज्जसिंखला। वीरे जीवन्तए जाओ गोयम जं न केवलि॥ - उद्धृतत कल्पसूत्र टीका विनयविजय, प्रका. हीरालाल जैन, जामनगर, 1939, पृ.120। , 10. सम्मत्तं चेव मिच्छत्तं, सम्मामिच्छत्तमेव य। . एयाओ तिन्निपयडीओ मोहणिज्जस्स दंसणे // - उत्तराध्ययन संपा.- साध्वी चंदना, प्रका. वीरायतन प्रकाशन, आगरा, 1972, 33/9 / वही, 25/31-32 सूत्रकृतांगसूत्र, संपा. मधुकर मुनि, प्रका. श्री आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर, 1982, 1/1/2/23. सन्मतितर्कप्रकरण, 3/69 उत्तराध्ययनसूत्र, संपा. साध्वी चंदना, प्रका. वीरायतन प्रकाशन, आगरा, 1972, 36/49 / सम्बोधसप्ततिका, अनु. डॉ. रविशंकर मिश्र, प्रका. पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, 1986, 2 / उपदेशतरंगिणी, संपा. विजय जिनेंद्रसूरि, प्रका. श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला, सौराष्ट्र, 1986, 1/81 . .. (134) 11. 12. 13. 14. 15. 16