________________ सेवन करना चाहिए। जो एक का सेवन करता है, वह अधम है, जो दो के सेवन में निपुण है, वह मध्यम है और जो इन तीनों में समान रूप से अनुरक्त है, वही मनुष्य उत्तम है।138 4. धर्मा ही श्रेष्ठ गुण (पुरुषार्थ) है, अर्थ मध्यम है और काम सबकी अपेक्षा निम्न है, क्योंकि धर्म से ही मोक्ष की उपलब्धि होती है, धर्म पर ही लोक-व्यवस्था आधारित है और धर्म में ही अर्थ समाहित है।139 5. मोक्ष ही परम पुरुषार्थ है। मोक्ष उपाय के रूप में ज्ञान और अनासक्ति-यही परम कल्याणकारक है। 40 चारों पुरुषार्थों की तुलना एवं क्रमनिर्धारण पुरुषार्थचतुष्टय के सम्बंध में उपर्युक्त विभिन्न दृष्टिकोण परस्पर विरोधी प्रतीत होते हैं, लेकिन सापेक्षिक-दृष्टि से इनमें विरोध नहीं रह जाता है। साधन की दृष्टि से विचार करने पर अर्थ ही प्रधान प्रतीत होता है, क्योंकि अर्थाभाव में दैहिक मांगों (काम) की पूर्ति नहीं होती। दूसरी ओर, लोक के अर्थाभाव से पीड़ित होने पर धर्मव्यवस्था या नीति भी समाप्त हो जाती है। कहा भी गया है- भूखा कौन-सा पाप नहीं करता?141 .. यदि साधक (व्यक्ति) की दृष्टि से विचार करें, तो दैहिक-मूल्य (काम) ही प्रधान प्रतीत होना है। मनोदैहिक-मूल्यों (इच्छा एवं काम) के अभाव में न तो नीतिअनीति का प्रश्न खड़ा होता है और न आर्थिक-साधनों की ही कोई आवश्यकता। दूसरे, धर्मसाधन और आध्यात्मिक-प्रगति भी शरीर से सम्बंधित हैं। कहा गया हैधर्मसाधन के लिए शरीर ही प्राथमिक हैं। 142 दैहिक-मांगों की पूर्ति के अभाव में चित्तशान्ति भी कैसे होगी और जिसका चित्त अशान्त है, वह क्या आध्यात्मिक-विकास करेगा? . (107)