________________ 14. (क) पदग्गं बाणउतिंलक्खा सोलस य सहस्सा। - नंदीचूर्णि, पृ. 70 (ख) द्विनवतिलक्षाणि षोडश च सहस्राणी। - समवायांगवृत्ति 15. , पण्हवायरणो णाम अंग तेणउदिलक्ख-सोलससहस्सपदेहि। - धवला, भाग 1, पृ. 104 16. समवायांग, 547 17. समवायांग, 547 18. प्रश्नव्याकरण, जयप्राभृत, (ग्रंथ 228), जैन ग्रंथावली, पृ. 355 (अ) चूडामणिवृत्ति (ग्रंथ 2300), पाटन केटलोग, भाग 1, पृ.८ (ब) लीलावती टीका, पाटन केटलोग, भाग 1, पृ. 8 एवं इन्ट्रोडक्शन, पृ.६ (स) प्रदर्शनज्योतिर्वृत्ति, पाटन केटलोग, भाग 1, पृ.८ एवं इन्ट्रोडक्शन, पृ. 6 बृहदवृत्तिटिप्पणिका (जैन साहित्य संशोधक, पूना 19,5, क्रमांक 560), जैन ग्रंथावली, पृ. 355 19. जिनरत्नकोश, पृ. 274 इसिभासियाइ (शुब्रिग) अध्याय 31, पृ. 69 महमाहप्पुप्पायं भुवणन्भंतरपवंत (वत्त) वावारं। अइसयपुण्णं णाणं, पण्हं जयपायडं वोच्छ। - - प्रश्नव्याकरणाख्यं जयपाहुडनाम निमित्तशास्त्रम् 3 22. नष्टमुष्टिचिन्ता - लाभालाभ - सुख - दुःख जीवित-मरणाभिव्यजं कत्वम्। - प्रश्नव्याकरणाख्यं जयपाहुडनाम निमित्तशास्त्रम्, टीका तुलनीय पण्हादो हद-नट्ठ-पुट्ठि-चिंता-लाहालाहसुह-दुक्ख - जीविय-मरणजथ-णाम-दव्वायु-संखं च परूवेदि। - धवला, भाग 1, पृ.१०७-८ 23.. प्रश्नव्याकरणाख्यं जयपाहुडनाम निमित्तशास्त्रम्, प्रकरण 14,17, 21, 38