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________________ गहराइयों में जाना सम्भव नहीं है। किसी अन्य लेख में उनकी चर्चा करेंगे, यद्यपि इस सम्पूर्ण विवेचना का यह अर्थ भी नहीं है कि आचारांगसूत्र में जो कुछ कहा गया है, वह सभी मनोवैज्ञानिक सत्यों पर आधारित है। अहिंसा, समता और अनासक्ति के जो आदर्श उसमें प्रस्तुत किए हैं, वे चाहे मनोवैज्ञानिक आधारों पर अधिष्ठित हों, किंतु जीवन में उनकी पूर्ण उपलब्धता की सम्भावनाओं पर मनोवैज्ञानिक दृष्टि से प्रश्नचिहन लगाया जा सकता है। ये आदर्श के रूप में चाहे कितने ही सुहावने हों, किंतु मानव जीवन में इनकी व्यावहारिक सम्भावना कितनी है, यह विवाद का विषय बन सकता है। रामपुत्त या रामगुप्त : सूत्रकृतांग के संदर्भ में ? सूत्रकृतांग के तृतीय अध्ययन में कुछ महापुरुषों के नामों का उल्लेख पाया जाता है। उनमें रामगुत्त (रामपुत्त) का भी नाम आता है। ' डॉ. भागचंद्र जैन भास्कर' ने ‘सम एथिकल एस्पेट्स ऑफ महायान बुद्धिज्म एज डिपिक्टेड इन सूत्रकृतांग' नामक अपने निबंध में सूत्रकृतांग में उल्लिखित रामगुप्त की पहचान समुद्रगुप्त के ज्येष्ठ पुत्र के रूप में की है। समुद्रगुप्त के ज्येष्ठ पुत्र रामगुप्त ने चंद्रप्रभ, पुष्पदन्त एवं पद्मप्रभ की प्रतिमाएं प्रतिष्ठित करवाई थीं , इस तथ्य की पुष्टि विदिशा के पुरातात्त्विक संग्रहालय में उपलब्ध इन तीर्थंकरों की मूर्तियों से होती है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि रामगुप्त एक जैन नरेश था, जिसकी हत्या उसके ही अनुज चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने कर दी थी, किंतु सूत्रकृतांग में उल्लिखित रामगुप्त की पहचान गुप्त सम्राट समुद्रगुप्त के पुत्र रामगुप्त से करने पर हमारे सामने अनेक प्रश्न उपस्थित होते हैं। सबसे प्रमुख प्रश्न तो यह है कि इस आधार पर सूत्रकृतांग की रचना-तिथि ईसा की चौथी शताब्दी के उत्तरार्द्ध एवं पांचवीं शती के पूर्वार्द्ध तक चली जाती है, जबकि भाषा, शैली एवं विषयवस्तुसभी आधारों पर सूत्रकृतांग ईसा पूर्व की रचना सिद्ध होता है। - सूत्रकृतांग में उल्लिखित रामगुप्त की पहचान समुद्रगुप्त के पुत्र से करने
SR No.004423
Book TitlePrakrit Agam evam Jain Granth Sambandhit Aalekh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherPrachya Vidyapith Shajapur
Publication Year2015
Total Pages212
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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