________________ वैयक्तिकता की धारणा का भी अतिक्रमण कर उसे अभेद की धारणा पर स्थापित करने का प्रयास किया है। हिंसा के निराकरण के प्रयास में भी सूत्रकार ने एक ओर इस मनोवैज्ञानिक सत्य को उजागर किया है कि हिंसा से हिंसा या घृणा से घृणा का निराकरण सम्भव नहीं है। वह तो स्पष्ट रूप से कहता है कि शस्त्रों के आधार पर या भय और हिंसा के आधार पर शांति की स्थापना सम्भव नहीं है, क्योंकि एक शस्त्र का प्रतिकार दूसरे शस्त्र के द्वारा सम्भव है। शांति की स्थापना तो निर्वैरता या प्रेम द्वारा ही सम्भव है, क्योंकि अशस्त्र से बढ़कर अन्य कुछ नहीं है। (आचारांगसूत्र 1/3/3) आचारांगसूत्र में मानवीय व्यवहार का प्रेरक तत्त्व सामान्यतया, राग और द्वेष- यह दो कर्मबीज माने गए हैं, किंतु इनमें भी राग ही प्रमुख तथ्य है। आचारांगसूत्र में कहा गया है कि आसक्ति ही कर्म का प्रेरक तथ्य है (1/3/2) / आचारांगसूत्र और आधुनिक मनोविज्ञान- दोनों ही इस सम्बंध में एकमत हैं कि मानवीय व्यवहार का मूलभूत प्रेरक तत्त्व वासना या काम है, फिर भी आचारांगसूत्र और आधुनिक मनोविज्ञान- दोनों में वासना के मूलभूत प्रकार कितने हैं, इस सम्बंध में कोई निश्चित संख्या नहीं मिलती है। पाश्चात्य मनोविज्ञान में जहां फ्रायड काम या राग को ही एकमात्र मूल प्रेरक मानते हैं, वहीं दूसरे विचारकों ने मूलभूत प्रेरकों की संख्या सौ तक मान ली है, फिर भी पाश्चात्य मनोविज्ञान में सामान्यतया चौदह निम्न मूल प्रवृत्तियां मानी गई हैं- 1. पलायनवृत्ति (भय), 2. घृणा, 3. जिज्ञासा, 4. आक्रामकता (क्रोध), 5. आत्मगौरव (मान), 6. आत्महीनता, 7. मातृत्व की संप्रेरणा, 8. समूह भावना, 9. संग्रहवृत्ति, 10. रचनात्मकता, 11. भोजनान्वेषण, 12. काम, 13. शरणागति और 14. हास्य (आमोद)। आचारांगसूत्र में भय, द्वेष, जिज्ञासा, क्रोध, मान, माया, लोभ, आत्मीयता, हास्य आदि का यत्र-तत्र बिखरा हुआ उल्लेख उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त, हिंसा के कारणों को निर्देश करते हुए कुछ कर्मप्रेरकों का उल्लेख है, यथा- जीवन जीने के लिए, प्रशंसा और मान-सम्मान पाने के लिए, जन्म-मरण से छुटकारा पाने के लिए, शारीरिक एवं मानसिक दुःखों की निवृत्ति हेतु प्राणी हिंसा करता है (1/1/4/37) / आचारांगसूत्र का सुखवादी दृष्टिकोण आधुनिक मनोविज्ञान हमें यह बताता है कि सुख सदैव अनुकूल इसलिए