________________ द्विविध वर्गीकरण है, वहां आचार्य हरिभद्र ने कालांतर में विकसित अणुव्रत, गुणव्रत एवं शिक्षाव्रत ऐसा त्रिविध वर्गीकरण किया है। श्रावक के व्रतों की इस चर्चा के प्रसंग में प्रस्तुत कृति में हरिभद्र ने श्रावक को किस व्रत का परिपालन कितने योगों और कितने करणों से करना होता है, इसकी विस्तृत चर्चा की है। आचार्य हरिभद्र ने करण और योग के संदर्भ में कुल भंगों की संख्या 49 मानी है और उनको भी अतीत, अनागत और वर्तमान के साथ गुणित करने पर कुल 147 भंग माने हैं। साथ ही यह भी बताया है कि भरतक्षेत्र के मध्यखण्ड के बाहर अनुमतिनिषेध के तीन भंग कम करने पर स्वयं के विषय में 144 भंग होते हैं। यहां यह भी चर्चा की गई है कि भरतक्षेत्र के बाहर श्रावकों के भी सर्वव्रत साधु के समान ही तीनकरण और तीनयोग से ही होते हैं। ज्ञातव्य है कि योग (साधन) तीन हैं- 1. मन, 2. वचन और 3. काया। इनके संयोग से कुल सात भंग (विकल्प) होते हैं यथा- 1. मन, 2. वचन, 3. काया, 4. मन और वचन, 5. मन और काया, 6. वचन और काया तथा 7. मन, वचन और काया। इसी प्रकार करण भी तीन हैं- 1. करना, 2. कराना और 3. अनुमोदन। इनके भी सांयोगिक भंग सात ही होंगे। यथा- 1. करना, 2. कराना, 3. अनुमोदन, 4. करना और कराना, 5. करना और अनुमोदन करना, 6. कराना और अनुमोदन करना तथा 7. करना, कराना एवं अनमोदन करना। इस प्रकार सात योग और सात करण को परस्पर गुणित करने पर उनचास (7 x7 = 49) भंग होते हैं। ये उनचास भंग भी तीन कालों की उपेक्षा से एक सौ सैंतालीस (49 x 3 = 147) भंग हो जाते हैं। इस चर्चा के पश्चात् प्रस्तुत कृति में आचार्य ने श्रावक के बारह व्रतों और उनके प्रत्येक के अतिचारों की विस्तृत चर्चा की है। आचार्य हरिभद्र ने भी सामान्यतया तो उन्हीं अतिचारों की चर्चा की है, जो अन्य ग्रंथों में भी वर्णित हैं। हरिभद्र द्वारा वर्णित अतिचारों की यह सूची उपासकदशा से बहुत कुछ मिलती है, किंतु कुछ अवधारणाओं को लेकर हरिभद्र का मतवैभिन्य भी दृष्टिगत होता है। उदाहरण के रूप में जहां छठे दिग्व्रत की चर्चा में जहां अन्य आचार्यों ने अन्य गुणव्रतों के समान इस गुणव्रत को भी आजीवन के लिए ग्राह्य माना गया है वहां आचार्य हरिभद्र ने दिग्व्रत का नियम चातुर्मास या उससे कुछ अधिक महीनों के लिए ही बताया है। आश्चर्य यह भी है कि उन्होंने दिव्रत के सर्वमान्य यथाउर्ध्व, अधो एवं तिर्यक् दिशा की मर्यादा का अतिक्रमण आदि की चर्चा के साथ (196)