________________ मांत्रिक साधनाओं का उल्लेख करता है। इसे हमें ध्यान में रखना होगा। यहां जैन मंत्रशास्त्र के साहित्य में इस ग्रंथ के उल्लेख करने का मुख्य आधार यह है कि इस ग्रंथ के विभिन्न अध्यायों में जैन परम्परा के अनुरूप मंत्र-साधना सम्बंधी विधिविधान भी उपलब्ध हो जाते हैं। इसके आठवें भूमिकर्म नामक अध्याय के प्रथम गजबन्ध नामक संग्रहणी पटल में जैन परम्परानुसार विविध मंत्र तथा उन मंत्रों के साधना सम्बंधी विधि-विधान प्राकृत मिश्रित संस्कृत भाषा में दिए गए हैं, जिन्हें हम नीचे अविकल रूप से दे रहे हैं (अट्ठमो भूमीकम्मऽज्झाओ) (तत्थ पढमं गजबंघेणं संगहणीपडलं) (1) णमो अरहंताणं, णमो सव्वसिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो महापुरिसस्स महतिमहावीरस्स सव्वण्णू-सव्वदरिसिस्स। इमा भूमीकम्मस्स विजा- 'इंदिआली इंदिआलि माहिंदे मारूदि स्वाहा, णमो महापुरिसदिण्णाए भगवईए अंगविजाए सहस्सवागरणाए खीरिणिविरणउदुंबरिणिए सह सर्वज्ञाय स्वाहा ‘सर्वज्ञानाधिगमाय स्वाहा सर्वकामाया स्वाहा सर्वकर्मसिद्धयै स्वाहा'। क्षीरवृच्छायायां अष्टमभक्तिकेन गुणयितव्या क्षीरेण च पारयितव्यम्, सिद्धिरस्तु। भूमिकर्मविद्याया उपचारः- चतुर्थभक्तिकेन कृष्णचतुर्दश्यां ग्रहीतव्या, षष्ठेन साघयितव्या अहतवत्थेण कुससत्थरे 1 // (2) णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं, णमो आमोसहिपत्ताणं, णमो विप्पोसहिपत्ताणं, णमो सव्वोसहिपत्ताणं, णमो संभिन्नसोयाणं, णमो खीरस्सवाणं, णमो मधुस्सवाणं, णमो कुछबुद्धीणं, णमो पबुद्धीणं, णमो अक्खीणमहाणसाणं, णमो रिद्धिपत्ताणं, णमो चउद्दसपुव्वीणं, णमो भगवईय महापुरिसदिन्नाए अंगविजाए सिद्धे सिद्धासेविए सिद्धचारणाणुचिन्ने अमियबले महासारे महाबलेअंगदुवारधरे स्वाहा।' ____ छट्ठग्गहणी, छट्टसाधणी, जापो अट्ठसयं, सिद्धा भवइ 2 // (3) णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो महापुरिसदिण्णाय अंगविजाए, णमोक्करयित्ता इमं मंगलं पंयोजयिस्सामि, सा मे विजा सव्वत्थं