________________ उन्मत्त दिया गया है। चूंकि चार्वाकदर्शन अध्यात्मवादियों की दृष्टि में उन्मत्तों का प्रलाप था, अतः उसे उत्कट (उन्मत्त) कहा गया है। मेरी दृष्टि में उक्कल का संस्कृत रूप उत्कट मानना उचित नहीं है। उसके स्थान पर उत्कल, उत्कुल या उत्कूल मानना अधिक समीचीन है। उत्कल का अर्थ है- जो निकाला गया हो, इसी प्रकार उत्कुल शब्द का तात्पर्य है- जो कुल से निकाला गया है, या जो कुल से बहिष्कृत है। चार्वाक आध्यात्मिक परम्पराओं से बहिष्कृत माने जाते थे, इसी दृष्टि से उन्हें उत्कल या उत्कुल कहा गया होगा। यदि हम इसे उत्कूल से निष्पन्न मानें, तो इसका अर्थ होगा- किनारे से अलग हटा हुआ। 'कूल' शब्द किनारे अर्थ में प्रयुक्त होता है, अतः ‘उत्कूल' अर्थात् जो किनारे से अलग होकर अर्थात् मर्यादाओं को तोड़कर अपना प्रतिपादन करता है, वह उक्कूल है। चूंकि चार्वाक मर्यादाओं को अस्वीकार करते थे, अत: उन्हें उत्कूल कहा गया होगा। अब हम इन उक्कलों के पांच प्रकारों की चर्चा करेंगे- . दण्डोक्कल - ये विचारक दण्ड के दृष्टांत द्वारा यह प्रतिपादित करते थे कि जिस प्रकार दण्ड अपने आदि, मध्य और अंतिम भाग से पृथक् होकर दण्ड संज्ञा को प्राप्त नहीं होता है, उसी प्रकार शरीर से भिन्न होकर जीव जीव नहीं रहता है। अतः, शरीर के नाश हो जाने पर भव अर्थात् जन्म-परम्परा का भी नाश हो जाता है। उनके अनुसार, शरीर में व्याप्त होकर जीव जीवन को प्राप्त होता है। वस्तुतः, शरीर और जीवन की अपृथक्ता या सामुदायिकता ही इन विचारकों की मूलभूत दार्शनिक मान्यता थी। दण्डोक्कल देहात्मवादी थे। रजूक्कल - .. . रजूक्कलवादी यह मानते हैं कि जिस प्रकार रज्जू तंतुओं का स्कंध- मात्र है, उसी प्रकार जीवन भी पंचमहाभूतों का स्कंध-मात्र है। उन स्कंधों के विच्छिन्न होने पर भव-संतति का भी विच्छेद हो जाता है। वस्तुतः, ये विचारक पंचमहाभूतों के समूह को ही जगत् का मूल तत्त्व मानते थे और जीव को स्वतंत्र के रूप में स्वीकार नहीं करते थे। रजूक्कल स्कंधवादी थे।